पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, परि और आवरण जिसमें परि का मतलब है हमारे आसपास या कह लें कि जो हमारे चारों ओर है। वहीं 'आवरण' का मतलब है जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है।
हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य कारण है व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति सचेत करने का। हम इंसानों और पर्यावरण के बीच बहुत गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है। हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाना ही होगा। विश्व में लगातार वातावरण दूषित होते जा रहा है, जिसका गहरा प्रभाव हमारे जीवन में पड़ रहा है।
पौधा लगाने की विधि
पौधा गड्ढे में उतनी गहराई में लगाना चाहिए जितनी गहराई तक वह नर्सरी या गमले में या पोलीथीन की थैली में था। अधिक गहराई में लगाने से तने को हानि पहुँचती है और कम गहराई में लगाने से जड़े मिट्टी के बाहर जाती है, जिससे उनको क्षति पहुँचती है।
पौधा लगाने के पूर्व उसकी अधिकांश पत्तियों को तोड़ देना चाहिए लेकिन ऊपरी भाग की चार-पांच पत्तियाँ लगी रहने देना चाहिए। पौधों में अधिक पत्तियाँ रहने से वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) अधिक होता है अर्थात् पानी अधिक उड़ता है। पौधा उतने परिमाण में भूमि से पानी नहीं खींच पाता क्योंकि जड़े क्रियाशील नहीं हो पाती है। अतः पौधे के अन्दर जल की कमी हो जाती है और पौधा मर भी सकता है।
पौधे का कलम किया हुआ स्थान अर्थात् मूलवृन्त और सांकुर डाली या मिलन बिन्दु (Graft Union) भूमि से ऊपर रहना चाहिए। इसके मिट्टी में दब जाने से वह स्थान सड़ने लग जाता है और पौधा मर सकता है।
जोड़ की दिशा दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर रहना चाहिए। ऐसा करने से तेज हवा से जोड़ टूटता नहीं है।
पौधा लगाने के पश्चात् उसके आस-पास की मिट्टी अच्छी तरह दबा देनी चाहिए, जिससे सिंचाई करने में पौधा टेढ़ा न हो पाए।
पौधा लगाने के तुरन्त बाद ही सिंचाई करनी चाहिए।
जहाँ तक सम्भव हो पौधे सायंकाल लगाये जाने चाहिए।
यदि पौधे दूर के स्थान से लाए गये हैं तो उन्हें पहले गमले में रखकर एक सप्ताह के लिए छायादार स्थान में रख देना चाहिए। इससे पौधों के आवागमन में हुई क्षति पूरी हो जाती हैं। इसके पश्चात् उन्हें गढ्ढों में लगाना चाहिए। तुरन्त ही गढ्ढे में लगा देने से पौधों के मरने का भय रहता है।
पौधे जो भी लगाये जाएँ उनमें निम्नलिखित गुण होने चाहिए, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है:
पौधे की उम्र कम से कम एक वर्ष होनी चाहिए। दो वर्ष से अधिक उम्र के पौधे भी नहीं लगाना चाहिए, उनके मरने का अधिक भय रहता है।
पौधे यथासम्भव गूटी विधि से या कलिकायन या उपरोपण विधि से तैयार किये हुए होने चाहिए। ऐसे पौधे कलमी या ग्राफ्टेड (Grafted)पौधे कहलाते है। ऐसे पौधों में अपने पेतृक वृक्ष से कम से कम गुणों में विभिन्नता होती है। बीज से तैयार किए गये पौधे पैतृक गुणों को स्थिर नहीं रख पाते , पर फिर वह भी अच्छे होते हैं।
पौधे अपने किस्मों के अनुसार सही होने चाहिए। अतः पौधे विश्वसनीय नर्सरी से ही मंगाए जाने चाहिए। ऐसी नर्सरी से पौधे नहीं लेना चाहिए जिससे मातृ वृक्ष (Mother Plants) न हो।
किसी भी प्रकार के रोग से संक्रमित नहीं होने चाहिए।
एक तने वाले सीधे, कम ऊँचाई वाले, फैले हुए उत्तम रहते है।
पौधों का मिलन बिन्दु (Graft Union) अच्छी तरह जुड़ा होना चाहिए।
कलिकायन या उपरोपण किए हुए पौधे में मिलन बिन्दु भूमि के कम से कम दूरी पर हो अर्थात् मूलवृन्त (Root Stock) का भाग या तना कम से कम लम्बाई का होना चाहिए।
पौधा ओजस्वी (Vigrous) तेजी से बढ़ता हुआ हो।
पौधा पोलीथीन या गमला में लगा हुआ हो। ऐसे पौधे लगाने पर कम मरते हैं।
यदि पौधे नर्सरी से उखाडे़ गये हो तो उनकी जड़ों में पर्याप्त मिट्टी का पिण्ड होना चाहिए।