योग के प्रमुख आसान और उनके लाभ इस प्रकार हैं:
1. अर्धमत्स्येन्द्रासन
अर्धमत्स्येन्द्रासन आसन को "हाफ स्पाइनल ट्विस्ट पोस" भी कहा जाता है। वैसे देखा जाए तो "अर्ध मत्स्येन्द्रासन" तीन शब्दों के मेल से बना है: अर्ध, मत्स्य, और इंद्र। अर्ध मतलब आधा, मत्स्य यानी मछली, और इंद्र मतलब भगवान। 'अर्धमत्स्येन्द्र' का अर्थ है शरीर को आधा मोड़ना या घुमाना। अर्धमत्स्येन्द्र आसन आपके मेरुदंड (रीढ़ की हड्डी) के लिए अत्यंत लाभकारक है। यह आसन सही मात्रा में फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है । यह आसन रीढ़ की हड्डी से सम्बंधित है इसीलिए इसे ध्यान पूर्वक किया जाना चाहिए।अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की प्रक्रिया
- पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ, दोनों पैरों को साथ में रखें,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
- बाएँ पैर को मोड़ें और बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें (या आप बाएँ पैर को सीधा भी रख सकते हैं)|
- दाहिने पैर को बाएँ घुटने के ऊपर से सामने रखें।
- बाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें और दाहिना हाथ पीछे रखें।
- कमर, कन्धों व् गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए दाहिने कंधे के ऊपर से देखें।
- रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
- इसी अवस्था को बनाए रखें ,लंबी , गहरी साधारण साँस लेते रहें।
- साँस छोड़ते हुए, पहले दाहिने हाथ को ढीला छोड़े,फिर कमर,फिर छाती और अंत में गर्दन को। आराम से सीधे बैठ जाएँ।
- दूसरी तरफ से प्रक्रिया को दोहराएँ।
- साँस छोड़ते हुए सामने की ओर वापस आ जाएँ।
अर्धमत्स्येन्द्रासन के लाभ
- मेरुदंड को मजबूती मिलती है।
- छाती को फ़ैलाने से फेफड़ो को ऑक्सीजन ठीक मात्रा में मिलती है।
- अर्ध मत्स्येन्द्रासन रीढ़ की हड्डी का लचीलापन बढ़ाता है, किस से उसकी कार्यकौशलता में सुधार होता है।
- पीठ में दर्द और कठोरता से राहत दिलाता है।
- छाती को खोलता है और फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ जाती है।
- कूल्हे के जोड़ों को कम कर देता है, और उनमें कठोरता से राहत दिलाता है अर्ध मत्स्येन्द्रासन।
- बाहों, कंधों, ऊपरी पीठ और गर्दन में तनाव को कम करता है।
- अर्ध मत्स्येन्द्रासन स्लिप-डिस्क के लिए चिकित्सीय है (लेकिन यह आसन करने से पहले डॉक्टर से सलाह ज़रूर करें)।
- पेट के अंगों की मालिश करता है और पाचन में सुधार लाता है जिस से कब्ज में लाभ होता है।
- अग्न्याशय के लिए लाभदायक है जिस से मधुमेह रोगियों के लिए उपयोगी है अर्ध मत्स्येन्द्रासन।
- डायबिटीज, कब्ज, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, मूत्र पथ विकारों, मासिक धर्म की परेशानियों, और अपच के लिए चिकित्सीय है अर्ध मत्स्येन्द्रासन।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन में सावधानियाँ
- जिनके दिल, पेट या मस्तिष्क की ऑपरेशन की गयी हो उन्हे इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- पेप्टिक अल्सर या हर्निया वाले लोगों को यह आसान बहुत सावधानी से करना चाहिए।
- अगर आपको रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट या समस्याएं हैं, तो आप यह आसन ना करें।
- हल्के स्लिप-डिस्क में इस आसन से लाभ हो सकता है, लेकिन गंभीर मामलों में इसे नहीं करना चाहिए।
2. बद्ध पद्मासन
बद्ध पद्मासन को अंग्रेजी भाषा में Locked Lotus Pose और Closed Lotus Pose भी कहा जाता है। बद्ध पद्मासन दो शब्दों से मिलकर बना है बद्ध और पद्म। जिसमे बद्ध का अर्थ होता है बांधा हुआ और पद्म का अर्थ होता है कमल का फूल।बद्ध पद्मासन करने का तरीका
- दंडासन में बैठ जायें। हल्का सा हाथों से ज़मीन को दबाते हुए, और साँस अंदर लेते हुए रीढ़ की हड्डी को लंबा करें।
- श्वास अंदर लें और अपनी दाईं टाँग को उठा कर दायें पैर को बाईं जाँघ पे ले आयें। और फिर दूसरे पैर के साथ भी ऐसा करें। अब आप पद्मासन में हैं। इस मुद्रा में आपके दायें कूल्हे और घुटने पर खिचाव आएगा।
- अब आपना बायाँ हाथ पीठ के पीछे से आगे की ओर ले आयें और बाए हाथ से बाए पैर का अंगूठा पकड़ लें। यह करने के बाद इस मुद्रा में एक से दो बार साँस अंदर और बाहर लें।
- और फिर यह क्रिया दायें हाथ से भी दौहरायें।
- अब आप बद्ध पद्मासन की मुद्रा में हैं।
- कुल मिला कर पाँच बार साँस अंदर लें और बाहर छोड़ें ताकि आप आसन में 30 से 60 सेकेंड तक रह सकें। धीरे धीरे जैसे आपके शरीर में ताक़त और लचीलापन बढ़ने लगे, आप समय बढ़ा सकते हैं — 90 सेकेंड से ज़्यादा ना करें।
- पाँच बार साँस लेने के बाद आप इस मुद्रा से बाहर आ सकते हैं।
बद्ध पद्मासन के लाभ
- बद्ध पद्मासन घुटनों और कूल्हों के जोड़ों का लचीलापन बढ़ाता है।
- कंधों, कलाईयों, पीठ, कोहनियों, घुटनों, और टख़नों में खिचाव लाता है और उन्हे मज़बूत बनाता है।
- यह पीठ की मांसपेशियों में खिचाव लाता है और रीढ़ की नसों में रक्त परिसंचरण बढ़ाता है।
- यह पाचन अंगों को उत्तेजित करता है और कब्ज से राहत दिलाता है।
- बद्ध पद्मासन का दैनिक अभ्यास गठिया में फायदेमंद है।
बद्ध पद्मासन करने में सावधानी
- जिनके घुटनों में दर्द हो, उन्हे भी बद्ध पद्मासन नहीं करना चाहिए।
- अगर आपकी हॅम्स्ट्रिंग में चोट हो, तो बद्ध पद्मासन ना करें।
- कंधों में चोट या दर्द हो तो यह आसन ना करें।
- अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक जोर न लगायें।
3. भद्रासन
'भद्र' का मतलब होता है 'अनुकूल' या 'सुन्दर'। यह आसन लम्बे समय तक ध्यान(मेडीटेसन) में बैठे रहने के लिए अनुकूल है और इससे शरीर निरोग और सुंदर रहने के कारण इसे भद्रासन कहा जाता हैं। भद्रासन योग को अंग्रेजी में 'ग्रेसिऑस पोज' भी कहा जाता हैं। भद्रासन कई प्रकार से किया जाता हैं पर हम यहाँ पर भद्रासन का सबसे सरल और उपयोगी प्रकार की जानकारी दे रहे हैं।भद्रासन करने का तरीका
- वज्रासन में बैठ जाएं। घुटनों को जितना संभव हो, दूर-दूर कर लें।
- पैरों की उंगलियों का सम्पर्क जमीन से बना रहे।
- अब पंजों को एक-दूसरे से इतना अलग कर लें कि नितम्ब और मूलाधार उनके बीचे जमीन पर टिक सकें।
- घुटनों को और अधिक दूर करने का प्रयास करें, लेकिन दूर करते समय अधिक जोर न लगाएं।
- हाथों को घुटनों पर रखें, हथेलियां नीचे की ओर रहें।
- जब शरीर आराम की स्थिति में आ जाए, तब नासिकाग्र दृष्टि (दृष्टि को नासिका के आगे वाले भाग पर ध्यान लगाना) का अभ्यास करें। जब आंखें थक जाएं, तब उन्हें कुछ देर के लिए बंद कर लें।
- आंखों को खोल लें और फिर से इस प्रक्रिया को दोहराएं।
- इस प्रक्रिया को इसी प्रकार दस मिनट तक दोहराएं।
भद्रासन में बरतने वाली सावधानियां
- गर्भवती महिलायें इस आसन को किसी ट्रेनर की मदद से करें।
- घुटने दर्द होने पर इस आसन को न करें।
- अगर इस आसन को करते समय कमर दर्द होती है तो इस आसन को न करें।
- पेट की समस्या में भी इस आसन को नहीं करना चाहिए।
भद्रासन के लाभ
- ध्यान में बैठने के लिए एक उपयोगी आसन हैं।
- एकाग्रता शक्ति बढ़ती हैं और दिमाग तेज होता हैं।
- मन की चंचलता कम होती हैं।
- पाचन शक्ति ठीक रहती हैं।
- पैर के स्नायु मजबूत होते हैं।
- सिरदर्द, कमरदर्द, आँखों की कमजोरी, अनिद्रा और हिचकी जैसे समस्या में राहत मिलती हैं।
4. भुजंगासन
अंग्रेजी में इसे Cobra Pose कहा जाता है। भुजंगासन फन उठाए हुएँ साँप की भाँति प्रतीत होता है, इसलिए इस आसन का नाम भुजंगासन है। भुजंगासन सूर्यनमस्कार और पद्मसाधना का एक महत्त्वपूर्ण आसान है जो हमारे शरीर के लिए अति लाभकारी है।यह छाती और कमर की मासपेशियो को लचीला बनाता है और कमर में आये किसी भी तनाव को दूर करता है। मेरुदंड से सम्बंधित रोगियों को अवश्य ही भुजंगासन बहुत लाभकारी साबित होगा।
गुर्दे से संबंधित रोगी हो या पेट से संभंधित कोई भी परेशानी, ये आसान सा आसन सभी समस्याओं का हल है।
भुजंगासन करनें की विधि
- ज़मीन पर पेट के बल लेट जाएँ, पादांगुली और मस्तक ज़मीन पे सीधा रखें।
- पैर एकदम सीधे रखें, पाँव और एड़ियों को भी एकसाथ रखें।
- दोनों हाथ, दोनों कंधो के बराबर नीचें रखे तथा दोनों कोहनियों को शरीर के समीप और समानान्तर रखें।
- दीर्घ श्वास लेते हुए, धीरे से मस्तक, फिर छाती और बाद में पेट को उठाएँ। नाभि को ज़मीन पे ही रखें।
- अब शरीर को ऊपर उठाते हुए, दोनों हाथों का सहारा लेकर, कमर के पीछे की ओर खीचें।
- गौर फरमाएँ: दोनों बाजुओं पे एक समान भार बनाए रखें।
- सजगता से श्वास लेते हुए, रीड़ के जोड़ को धीरे धीरे और भी अधिक मोड़ते हुए दोनों हाथों को सीधा करें; गर्दन उठाते हुए ऊपर की ओर देखें।
- गौर फरमाएँ: क्या आपके हाथ कानों से दूर हैं? अपने कंधों को शिथिल रखेंl आवश्यकता हो तो कोहनियों को मोड़ भी सकते हैं। यथा अवकाश आप अभ्यास ज़ारी रखते हुए, कोहनियों को सीधा रखकर पीठ को और ज़्यादा वक्रता देना सीख सकते हैं।
- ध्यान रखें कि आप के पैर अभी तक सीधे ही हैं। हल्की मुस्कान बनाये रखें, दीर्घ श्वास लेते रहें मुस्कुराते भुजंग।
- अपनी क्षमतानुसार ही शरीर को तानें, बहुत ज़्यादा मोड़ना हानि प्रद हो सकता हैं।
- श्वास छोड़ते हुए प्रथमत: पेट, फिर छाती और बाद में सिर को धीरे से वापस ज़मीन ले आयें।
भुजंगासन में सावधानियाँ
- सबसे महत्वपूर्ण बात भुजंगासन या फिर योग का कोई और अन्य आसन भी तो उसे अपनी क्षमता के अनुसार ही करना चाहिए।
- यदि इस आसन को करते वक्त आपको पेट दर्द या शरीर के किसी अन्य शरीर में अधिक दर्द हो तो इस आसन को ना करे।
- जिस व्यक्ति को पेट के घाव या आंत की बीमारी है वो इस आसन को करने से पहले चिकित्सक से सलाह ले।
- इस आसन का अभ्यास करते वक्त पीछे की तरफ ज्यादा ना झुकें। इससे माँस-पेशियों में खिंचाव आ सकता है जिसके चलते बाँहों और कंधों में दर्द पैदा होने की संभावना बढ़ती है।
भुजंगासन से होने वाले लाभ
- कंधे और गर्दन को तनाव से मुक्त कराना।
- पेट के स्नायुओं को मज़बूत बनाना।
- संपूर्ण पीठ और कंधों को पुष्ट करना।
- रीढ़ की हड्डी का उपरवाला और मंझला हिस्सा ज़्यादा लचीला बनाना।
- थकान और तनाव से मुक्ति पाना।
- अस्थमा तथा अन्य श्वास प्रश्वास संबंधी रोगों के लिए अति लाभदायक (जब अस्थमा का दौरा जारी हो तो इस आसन का प्रयोग ना करें)।
5. चक्रासन
चक्र का अर्थ होता है पहिया, इस आसन को करने पर शरीर की आकृति चक्र के सामान नजर आती है इसलिए इस आसन को चक्रासन कहा जाता है। धनुरासन के विपरीत होने की वजह से इसे उर्ध्व धनुरासन भी कहते है। योग शास्त्र में इस आसान को मणिपूरक चक्र कहा जाता है।चक्रासन करने की विधि
- सबसे पहले स्वस्छ और समतल जमीन पर चटाई या आसन बिछा लें।
- अब जमीन पर पीठ के बल शवासन की स्थिति में लेट जाये।
- फिर दोनों पेरो के बीच एक से डेढ़ फ़ीट का अंतर बनाये तथा पेरो के तलवो और एड़ियो को जमीन से लगाएं।
- अब दोनों हाथो की कोहनियो को मोड़कर, हाथो को जमीन पर कान के पास इस प्रकार लगाएं कि उंगलियाँ कंधों की ओर तथा हथेलिया समतल जमीन पर टिक जाये।
- अब शरीर को हल्का ढीला छोड़े और गहरी साँस लें।
- पैरों और हाथो को सीधा करते हुए, कमर, पीठ तथा छाती को ऊपर की ओर उठाएं। सिर को कमर की ओर ले जाने का प्रयास करें तथा शरीर को ऊपर करते समय साँस रोककर रखे।
- अंतिम स्थिति में पीठ को सुविधानुसार पहिये का आकर देने की कोशिश करें।
- शुरुवात में इस आसन को 15 सेकंड तक करने का प्रयत्न करें। अभ्यास अच्छे से हो जाने पर 2 मिनट तक करे।
- कुछ समय पश्चात् शवासन की अवस्था में लोट आएं।
चक्रासन के लाभ
यह योग जितना कठिन है उतना ही शरीर के लिए लाभप्रद भी है। आइये जानते है चक्रासन के लाभ:-- यह आसन करने रक्त का प्रवाह तेजी से होता है।
- मेरुदंड तथा शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होकर योगिक चक्र जाग्रत होते है।
- छाती, कमर और पीठ पतली और लचीली होती है साथ ही रीड़ की हड्डी और फेफड़ों में लचीलापन आता है।
- मांसपेशियों मजबूत होती है जिसके कारण हाथ, पैर और कंधे चुस्त दुरुस्त होते है।
- इस आसन के करने से लकवा, शारीरिक थकान, सिरदर्द, कमर दर्द तथा आंतरिक अंगों में होने वाले दर्द से मुक्ति मिलती है।
- पाचन शक्ति बड़ती है। पेट की अनावश्चयक चर्बी काम होती है और शरीर की लम्बाई बढ़ती है।
- इस आसन को नियमित करने से वृद्धावस्था में कमर झुकती नहीं है और शारीरिक स्फूर्ति बनी रहती है साथ ही स्वप्नदोष की समस्या से भी मुक्ति मिलती है।
चक्रासन में सावधानियाँ
योग करने से लाभ तब होता है जब हम उन्हें सही तरीके और सही अवस्था में करें। थोड़ी सी गलती हमारे शरीर के लिए बहुत ही नुकसानदेह हो सकती है। आइये जानते है चक्रासन को करते समय किन-किन सावधानियों को रखना चाहिए-- दिल के मरीज, कमर और गर्दन दर्द के रोगी, हाई ब्लड प्रेशर और किसी भी तरह के ऑपरेशन वाले लोगो को भी यह आसान नहीं करना चाहिए|
- योगाचार्य की उपस्थिति में ही इस Chakrasana का अभ्यास करें।
6. धनुरासन
धनुरासन करने पर शरीर 'धनुष' आकार की तरह दृश्यमान होता है, इसलिए यह आसन धनुरासन कहा गया है। यह आसन कमर और रीड़ की हड्डी के लिए अति लाभदायक होता है। धनुरासन करने से गर्दन से लेकर पीठ और कमर के निचले हिस्से तक के सारे शरीर के स्नायुओं को व्यायाम मिलता है।अगर इस आसन का अधिकतम लाभ प्राप्त करना हों तो सर्वप्रथम भुजंगआसन (Snake Pose), उसके बाद शलभासन (Locust Pose), और अंत में तीसरा धनुरासन (The Bow Pose) करना चाहिए।
कई योगी-ऋषि गण इन तीन आसनों को 'योगासनत्रयी' कह कर भी पुकारते हैं। यह आसन शरीर के स्नायुओं को तो मज़बूती प्रदान करता ही है, इसके साथ साथ पेट से जुड़े जटिल रोगों को दूर करने में भी सहायक होता है। वज़न नियंत्रित करना हों या शरीर सुडौल करना हो, धनुरासन एक अत्यंत गुणकारी आसन है।
धनुरासन करने का तरीका
- पेट के बल लेटकर, पैरो मे नितंब जितना फासला रखें और दोनों हाथ शरीर के दोनों ओर सीधे रखें।
- घुटनों को मोड़ कर कमर के पास लाएँ और घुटिका को हाथों से पकड़ें।
- श्वास भरते हुए छाती को ज़मीन से उपर उठाएँ और पैरों को कमर की ओर खींचें।
- चेहरे पर मुस्कान रखते हुए सामने देखिए।
- श्वासोश्वास पर ध्यान रखे हुए, आसन में स्थिर रहें, अब आपका शरीर धनुष की तरह कसा हुआ हैl
- लम्बी गहरी श्वास लेते हुए, आसन में विश्राम करें।
- सावधानी बरतें आसन आपकी क्षमता के अनुसार ही करें, जरूरत से ज्यादा शरीर को ना कसें।
- १५-२० सैकन्ड बाद, श्वास छोड़ते हुए, पैर और छाती को धीरे धीरे ज़मीन पर वापस लाएँl घुटिका को छोड़ेते हुए विश्राम करें।
धनुरासन के लाभ
- पीठ / रीढ़ की हड्डी और पेट के स्नायु को बल प्रदान करना ।
- छाती, गर्दन और कंधोँ की जकड़न दूर करना।
- हाथ और पेट के स्नायु को पुष्टि देना।
- रीढ़ की हड्डी क़ो लचीला बनाना।
- तनाव और थकान से निजाद।
- गुर्दे के कार्य में सुव्यवस्था।
धनुरासन में सावधानी
- गर्भवती महिलाओं के लिए यह आसन पूरी तरह से वर्जित है। कमर से जुड़ी गंभीर समस्या हों उन्हे यह आसन डॉक्टर की सलाह लेने के बाद ही करना चाहिए।
- पेट में अल्सर हों, उन्हे यह आसन हानी कारक हो सकता है। उच्च रक्तचाप की समस्या वाले व्यक्ति यह आसन ना करें। सिर दर्द की शिकायत रहती हों, उन्हे भी धनुरासन नहीं करना चाहिए।
- आंतों की बीमारी हों या फिर रीड़ की हड्डी में कोई गंभीर समस्या हों उन्हे भी यह आसन नहीं करना चाहिए।
- गर्दन में गंभीर चोट लगी हों, या फिर माईग्रेन की समस्या हों, तो यह आसन ना करें।
- सारण गाठ (Hernia) रोग से पीड़ित व्यक्ति को यह आसन हानिकारक होता है।
7. गोमुखासन
संस्कृत में 'गोमुख' का अर्थ होता है 'गाय का चेहरा' या गाय का मुख़। इस आसन में पांव की स्थिति बहुत हद तक गोमुख की आकृति जैसे होती है। इसीलिए इसे गोमुखासन कहा जाता है। इसे अंग्रेजी में Cow Face Pose कहा जाता है। यह महिलाओं के लिए अत्यंत लाभदायक आसन है। यह गठिया, साइटिका, अपचन, कब्ज, धातु रोग, मधुमेह, कमर में दर्द होने पर यह आसन बहुत अधिक लाभप्रद हैं।गोमुखासन योग करने की विधि
- पहले दंडासन अर्थात दोनों पैरों को सामने सीधे एड़ी-पंजों को मिलाकर बैठे। हाथ कमर से सटे हुए और हथेलियां भूमि टिकी हुई। नजरें सामने।
- अब बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को दाएं नितम्ब के पास रखें। दाहिने पैर को मोड़कर बाएं पैर के ऊपर एक दूसरे से स्पर्श करते हुए रखें। इस स्थिति में दोनों जंघाएं एक-दूसरे के ऊपर रखा जाएगी जो त्रिकोणाकार नजर आती है।
- फिर श्वास भरते हुए दाहिने हाथ को ऊपर उठाकर दाहिने कंधे को ऊपर खींचते हुए हाथ को पीछे पीठ की ओर ले जाएं तब बाएं हाथ को पेट के पास से पीठ के पीछे से लेकर दाहिने हाथ के पंजें को पकड़े। गर्दन व कमर सीधी रखें।
- अब एक ओर से लगभग एक मिनट तक करने के पश्चात दूसरी ओर से इसी प्रकार करें। जब तक इस स्टेप में आराम से रहा जा सकता है तब तक रहें।
- कुछ देर बाद धीरे- धीरे श्वास छोड़ते हुए हाथों के लाक को खोल दें और क्रमश: पुन: दंडासन की स्थिति में आ जाएं। फिर दाएं पैर को मोड़कर तथा दाहिने हाथ को उपर से पीछे ले जाकर इसे करें तो एक चक्र पूरा होगा।
- अवधि/दोहराव- हाथों के पंजों को पीछे पकड़े रहने की सुविधानुसार 30 सेकंड से एक मिनट तक इसी स्थिति में रहें।
- इस आसन के चक्र को दो या तीन बार दोहरा सकते हैं।
गोमुखासन योग से सावधानी
- हाथ, पैर और रीढ़ की हड्डी में कोई गंभीर रोग हो तो यह आसन न करें।
- जबरदस्ती पीठ के पीछे हाथों के पंजों को पकड़ने का प्रयास न करें।
गोमुखासन से लाभ
- इससे हाथ-पैर की मांसपेशियां चुस्त और मजबूत बनती है।
- तनाव दूर होता है।
- कंधे और गर्दन की अकड़न को दूरकर कमर, पीठ दर्द आदि में भी लाभदायक।
- छाती को चौड़ा कर फेफड़ों की शक्ति को बढ़ाता है जिससे श्वास संबंधी रोग में लाभ मिलता है।
- यह आसन सन्धिवात, गठीया, कब्ज, अंडकोषवृद्धि, हर्निया, यकृत, गुर्दे, धातु रोग, बहुमूत्र, मधुमेह एवं स्त्री रोगों में बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता है।
8. हलासन
इस आसन में शरीर का आकार हल जैसा बनता है। इससे इसे हलासन कहते हैं। हलासन हमारे शरीर को लचीला बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। इससे हमारी रीढ़ सदा जवान बनी रहती है।हलासन करने का तरीका
- पीठ के बल सीधे लेट जायें। बाज़ुओं को सीधा पीठ के बगल में ज़में पर टिका कर रखें।
- साँस अंदर लेते हुए दोनो टाँगों को उठा कर “अर्ध-हलासन” में ले आयें (चित्र में मुद्रा देखें)।
- कोहनियों को ज़मीन पर टिकाए हुए दोनो हाथों से पीठ को सहारा दें । इस मुद्रा में 1-2 साँस अंदर और बाहर लें और यह पक्का कर लें की आपका संतुलन सही है।
- अब टाँगों को बिल्कुल पीछे ले जायें। दृष्टि को नाक पर रखें। अगर आपको यह करने से दिक्कत होती है संतुलन बनाए रखने में तो दृष्टि को नाभी पर भी रख सकते हैं।
- अगर आपके कंधों में पर्याप्त लचीलापन हो तो हाथों को पीछे ले जा कर जोड़ लें। अगर यह संभव ना हो तो उन्हे पीठ को सहारा देती हुई मुद्रा में ही रखें।
- अपनी क्षमता के मुताबिक 60 से 90 सेकेंड तक इस मुद्रा में रहें और फिर धीरे से पैरों को वापिस ले आयें। शुरुआत में कम देर करें (30 सेकेंड भी पर्याप्त है) और धीरे धीरे समय बढ़ायें।
हलासन करते समय निम्न सावधानी रखें
- रीढ़ संबंधी गंभीर रोग अथवा गले में कोई गंभीर रोग होने की स्थिति में यह आसन न करें।
- आसन करते वक्त ध्यान रहे कि पैर तने हुए तथा घुटने सीधे रहें।
हलासन करने से लाभ
- रीढ़ में कठोरता होना वृद्धावस्था की निशानी है।
- हलासन से रीढ़ लचीली बनती है।
- मेरुदंड संबंधी नाड़ियों के स्वास्थ्य की रक्षा होकर वृद्धावस्था के लक्षण जल्दी नहीं आते।
- हलासन के नियमित अभ्यास से अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, अंगविकार, असमय वृद्धत्व, दमा, कफ, रक्तविकार आदि दूर होते हैं।
- सिरदर्द दूर होता है।
- नाड़ीतंत्र शुद्ध बनता है।
- शरीर बलवान और तेजस्वी बनता है।
- लीवर और प्लीहा बढ़ गए हो तो हलासन से सामान्यावस्था में आ जाते हैं। अपानवायु का उत्थानन होकर उदान रूपी अग्नि का योग होने से कुंडलिनी उर्ध्वगामी बनती है।
- विशुद्धचक्र सक्रिय होता है।
9. जानुशीर्षासन
जानुशीर्षासन योग एक संस्कृत का शब्द हैं, यह दो शब्दों से मिलकर बना हैं जिसमे पहला शब्द 'जानु' हैं जिसका अर्थ 'घुटना' हैं और दूसरा शब्द 'शीर्ष' का अर्थ 'सिर' होता हैं। जानुशीर्षासन अष्टांग योग की प्राथमिक श्रृंखला का हिस्सा है। यह एक बैठा हुआ आसन हैं। इस आसन में सिर पूरी तरह से आपके घुटनों को छूता हैं। हालांकि यह आसन देखने में शीर्षासन के समान लगता हैं पर यह उससे बहुत ही अलग हैं। इस मुद्रा का इरादा शरीर को फोल्ड करना है ताकि आपका सिर घुटने के करीब पहुँच सके। यह योग आसन हमारे शरीर को स्वस्थ रखन में बहुत मदद करता हैं।जानुशीर्षासन करने की प्रकिया
- पैरों को सामने की ओर सीधे फैलाते हुए बैठ जाएँ,रीढ़ की हड्डी सीधी रखें।
- बाएँ घुटने को मोड़े, बाएँ पैर के तलवे को दाहिनी जांघ के पास रखें, बायाँ घुटना ज़मीन पर रहे।
- साँस भरें,दोनों हाथों को सिर से ऊपर उठाएँ, खींचे ओर कमर को दाहिनी तरफ घुमाएँ।
- साँस छोड़ते हुए कूल्हों के जोड़ से आगे झुकें,रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए , ठुड्डी को पंजों की और बढ़ाएँ।
- अगर संभव हो तो अपने पैरों के अंगूठों को पकडे,कोहनी को जमीन पर लगाएँ,अँगुलियों को खींचते हुए आगे की ओर बढ़े।
- साँस रोकें। (स्थिति को बनाए रखें)
- साँस भरें, साँस छोड़ते हुए ऊपर उठें,हाथों को बगल से नीचे ले आएँ।
- पूरी प्रक्रिया को दाएँ पैर के साथ दोहराएँ।
जानुशीर्षासन के फायदे
- इस आसन को करने से आपके पेट की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, इसके साथ यह आसन आपके पेट के छोटी और बड़ी आंतों को फैलता हैं। जो पाचन क्रिया को मजबूत करता हैं। यह आपके पेट में कब्ज की समस्या को खत्म कर देता हैं। यह पेट फूलना और पेट की सूजन की परेशानी को भी दूर करता है।
- इस आसन का अभ्यास करने से अनिद्रा, साइनसिसिटिस और उच्च रक्तचाप भी ठीक हो जाता है। जानुशीर्षासन मन को शांत रखता हैं और हल्के तनाव से भी रहत देता हैं।
- प्लीहा और पित्त मूत्राशय को मजबूत करता है और उनको स्वस्थ रखता हैं। यह यकृत और गुर्दे को उत्तेजित करता हैं और उनके कार्य को सुधरता हैं। यह पेट के क्षेत्र में रक्त प्रवाह में वृद्धि और गुर्दे की क्रिया को बढ़ावा देता है।
- शरीर का तापमान हमारे शरीर से ठंडी को कम करने में मदद करता हैं। अगर आप जानुशीर्षासन को सही ढंग से करते हैं तो यह आपको बुखार होने से बचाता हैं। इसके अलावा यह आसन फ्लू के कारण ग्रंथि में हुई सूजन को जल्दी से ठीक कर देता हैं।
- इस आसन को करने से ग्रोइन, हैमस्ट्रिंग और कंधे को एक अच्छा खिंचाव मिलता है।
- यह आसन प्रजनन प्रणाली के कार्य में सुधार करता है। इस आसन को करने से प्रजनन अंग भी उत्तेजित होते हैं, जिसके कारण मासिक धर्म और रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म का बन्द होना) आदि की समस्या खत्म हो जाती हैं।
- गर्भावस्था के दौरान, यह आसन पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करता है। लेकिन इस आसन को केवल दूसरे तिमाही तक ही अभ्यास किया जाना चाहिए।
- मोटापा कम करने के लिए जानुशीर्षासन लाभदायक हैं।
- यह हिप्स और पूरे शरीर को फैलता हैं।
- जानुशीर्षासन के लाभ यह पैरों के दर्द को कम करता हैं।
जानुशीर्षासन करने में क्या सावधानी रखें
- अगर आपको घुटनों में दर्द हैं तो आप इस आसन को ना करें।
- गंभीर पीठ दर्द से पीड़ित व्यक्ति को यह आसन नहीं करना चाहिए।
- अगर आप दस्त और अस्थमा की समस्या से परेशान हैं तो आप इस आसन को करने से बचें।
- अगर आप लम्बर डिस्क हर्नियेशन के रोगी हैं तो आप इस आसन को ना करें।
10. कर्नापीड़ासन
कर्णपीड़ासन को इयर प्रेशर पोज़ और नी टु इयर पोज़ भी कहा जाता है। कर्णपीड़ासन को कान के दबाव की मुद्रा के रूप में भी जाना जाता है। यह योग मुद्रा हलासन के समान होती है।कर्णपीड़ासन के सबसे महत्वपूर्ण लाभों में से एक यह है कि सिर में खून का प्रवाह बढ़ जाता है। जो की कान और साइनस ब्लॉकेज को प्राकृतिक रूप से सही करके कानो को स्वथ्य रखता है।
कर्णपीड़ासन, कर्ना + पिडा + आसन के संयोजन से बना है, जिसमें 'कर्ण' का मतलब है कान, 'पिडा' का मतलब दर्द और आसन का मतलब है मुद्रा।
कर्णपीड़ासन कान से संबंधित सभी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। यह हलासन और सर्वांगासन का एडवांस स्तर होता है। कर्णपीड़ासन की शुरुआत करने से पहले आपको पहले हलासन और सर्वांगासन में निपूर्ण होना होगा।
कर्णपीड़ासन को करने की विधि
- कर्णपीड़ासन को करने के लिए सबसे पहले आसन पर लेट जाए।
- भुजाओं को सीधा रखते हुए हाथो को पीठ के बगल में जमीन पर टिका कर रखे।
- फिर सांसो को अंदर लेते हुए दोनों टांगो को ऊपर उठाये और अर्ध हलासन की स्थिति में लाये।
- इसके बाद कोहिनोयो को जमीन पर टिकाते हुए दोनों हांथो के द्वारा पीठ को सहारा दे।
- इस मुद्रा में 1 से २ बार सांसो को अंदर और बाहर की तरफ छोड़े, साथ ही शरीर का संतुलन बना ले।
- फिर टांगों को उठाते हुए हलासन की स्थिति में आये और घुटनो को नीचे की ओर लाये।
- यह जब तक करना है जब तक आपके घुटनो से दोनों कान बंद न हो जाए|
- अपनी नजरे नाक पर रखे, यदि ऐसा करने में आपको कठिनाई आ रही है तो संतुलन बनाये रखने के लिए नाभि को भी देख सकते है।
- यदि आपके कंधो में लचीलापन है तो हांथो को पीछे ले जाए और जोड़ ले।
- यदि आपके कंधो में लचीलापन है तो हांथो को पीछे ले जाए और जोड़ ले।
- और अगर इसे करने में भी कठिनाई हो रही हो तो हांथो को इस तरह रखे की पीठ को सहारा मिल सके।
- अपनी क्षमता के अनुसार 60 से 90 सेकंड तक इस मुद्रा में रहे। इसके बाद अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाये।
कर्णपीड़ासन को करने के लाभ
- यह आसन पेट के अंगो और थायरॉइड ग्रथि को उत्तेजित करता है।
- कर्णपीड़ासन को नियमित करने से दिमाग शांत रहता है।
- कर्णपीड़ासन उच्च रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है।
- इस आसन द्वारा कंधो और रीढ़ की हड्डी में खिचाव होता है।
- जो बहुत तनावपूर्ण माहौल में रहता है उसे यह आसन जरूर करना चाहिए।
- यह आसन फेफड़े को शक्ति देता है और अस्थमा के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है।
कर्णपीड़ासन के समय सावधानियां
- इस आसन को अपनी शारीरिक क्षमता से ज्यादा नहीं करना चाहिए।
- शुरुआत में यह आसन थोड़ा कठिन है इसलिए किसी प्रशिक्षक की देखरेख में ही करे।
11. मत्स्यासन
मत्स्य का अर्थ होता है मछली, इस आसन के दौरान शरीर का आकार मछली जैसा बनता है, इसलिए इस आसान को मत्स्यासन नाम दिया गया है। अंग्रेजी में इसे फिश पोज़ के नाम से भी जाना जाता है। जिन लोगो को कमर दर्द और गले से सम्बंधित समस्याए है, उन्हें यह आसान जरूर करना चाहिए।मत्स्यासन करने की विधि
- मत्स्यासन का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम पद्मासन में बैठ जाए।
- अब पीछे की और झुखे और लेट जाये।
- फिर अपने दोनों हाथो को एक दूसरे से बांधकर सिर के पीछे रखे और पीठ के हिस्से को ऊपर उठाकर गर्दन मोड़ते हुए सिर के उपरी हिस्से को जमीन पर टिकाए।
- अब अपने दोनों पैर के अंगूठे को हाथों से पकडे और ध्यान रहे की कोंहनिया जमीन से सटी हुई हो।
- एक से पांच मिनिट तक अभ्यास करे।
- इस स्थिति में कम से कम 5 सेकंड तक रुके और फिर पूर्व अवस्था में वापिस आ जाये।
- यह आसन करते समय श्वसन की गति नियमित रखे, और 5 मिनट तक इस योग क्रिया का अभ्यास कर सकते है।
मत्स्यासन योग से मिलने वाले लाभ
- यह योग दमे के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद है।
- यह शुद्ध रक्त का निर्माण तथा संचार करता है।
- मधुमेह के रोगियों के लिए यह आसान बहुत फायदेमंद है ।
- मत्स्यासन योग के नियमित अभ्यास से छाती और पेट के रोग दूर होते हैं।
- इस योग के अभ्यास से खाँसी दूर होती है और पाचन तंत्र सुधरता है।
- मत्स्यासन चेहरे और त्वचा को आकर्षक तथा शरीर को कांतिमान बना देता है।
- यह कब्ज दूर कर भूख बढ़ाता है तथा भोजन पचाता है और पेट की गैस दूर करता है।
- जो लोग अपने बड़े हुए पेट को कम करना चाहते है, उन्हें यह योग क्रिया को जरूर करना चाहिए।
12. मयूरासन
मयूर का अर्थ होता है मोर। इस आसन करने से शरीर की आकृति मोर की तरह दिखाई देती है, इसलिए इसका नाम मयूरासन है। इस आसन को बैठकर सावधानीपूर्वक किया जाता है। इस आसन में शरीर का पूरा भार हाथों पर टिका होता है और शरीर हवा में लहराता है।मयूरासन करने की विधि
- दोनों हाथों को दोनों घुटने के बीच रखें। हाथ के अँगूठे और अँगुलियाँ अंदर की ओर रखते हुए हथेली जमीन पर रखें।
- फिर दोनों हाथ की कोहनियों को नाभि केंद्र के दाएँ-बाएँ अच्छे से जमा लें।
- पैर उठाते समय दोनों हाथों पर बराबर वजन देकर धीरे-धीरे पैरों को उठाएँ।
- हाथ के पंजे और कोहनियों के बल पर धीरे-धीरे सामने की ओर झुकते हुए शरीर को आगे झुकाने के बाद पैरों को धीरे-धीरे सीधा कर दें।
- पुन: सामान्य स्थिति में आने के लिए पहले पैरों को जमीन पर ले आएँ और तब पुन: वज्रासन की स्थिति में आ जाएँ।
- जमीन पर पेट के बल लेट जाइए। दोनों पैरों के पंजों को आपस में मिलाइए।
- दोनों घुटनों के बीच एक हाथ का अंतर रखते हुए दोनों पैरों की एड़ियों को मिलाकर गुदा को एड़ी पर रखिए।
- फिर दोनों हाथों को घुटनों के अंदर रखिए ताकि दोनों हाथों के बीच चार अंगुल की दूरी रहे। दोनों कोहनियों को आपस में मिला कर नाभि पर ले जाइए।
- अब पूरे शरीर का वजन कोहनियों पर दें कर घुटनों और पैरों को जमीन से उठाये रखिए। सिर को सीधा रखिए।
मयूरासन करते समय ध्यान देंने योग्य बातें
- मयूरासन खुली हवादार जगह में करना चाहिए। इसके लिए आप सबसे पहले घुटनों के बल बैठ जाएं और आगे की ओर झुके।
- आगे झुकते हुए दोनों हाथों की कोहनियों को मोड़कर नाभि पर लगाकर जमीन पर सटा लें। इसके बाद अपना संतुलन बनाते हुए घुटनों को धीरे-धीरे सीधा करने की कोशिश करें।
- अब आपका शरीर पूरी सीध में है और सिर्फ आपके हाथ जमीन से सटे हुए हैं।
- इस आसन को करने के लिए शरीर का संतुलन बनाए रखना जरूरी है जो कि पहली बार में संभव नहीं। यदि आप रोजाना मयूर आसन का अभ्यास करेंगे तो आप निश्चित तौर पर आसानी से इसे कर पाएंगे।
मयूरासन के लाभ
- आमतौर पर मयूरासन से गुर्दे, अग्नाश्य और आमाशय के साथ ही यकृत इत्यादि को बहुत लाभ होता है।
- यह आसन फेफड़ों के लिए बहुत उपयोगी है।इस आसन से वक्षस्थल, फेफड़े, पसलियाँ और प्लीहा को शक्ति प्राप्त होती है।
- तिल्ली, यकृत, गुर्दे, अग्न्याशय एवं आमाशय सभी लाभान्वित होते है।
- मधुमेह के रोगियों के लिए भी यह आसन लाभकारी है। इस आसन से क्लोम ग्रंथि पर दबाव पड़ने के कारण मधुमेह के रोगियों को भी लाभ मिलता है। इस आसन का अभ्यास करने वालों को मधुमेह रोग नहीं होता। यदि यह हो भी जाए तो दूर हो जाता है।
- चेहरे पर चमक लाने के लिए मयूरासन करना चाहिए। यह आसन चेहरे पर लाली प्रदान करता है तथा उसे सुंदर बनाता है।
- यह आसन शरीर में रक्त संचार को नियमित करता है।
- यह आसन पेट के रोगों जैसे-अफारा, पेट दर्द, कब्ज, वायु विकार और अपच को दूर करता है।
- यह आसन भुजाओं और हाथों को बलवान बनाता है।
- मयूरासन करने से हाथ, पैर व कंधे की मांसपेशियों में मजबूती आती है।
- यदि आपको आंखों संबंधी कोई समस्या है तो उसका निदान भी मयूरासन से किया जा सकता है।
- पाचन क्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए मयूरासन करना चाहिए। यदि आपको पेट संबंधी समस्याएं जैसे गैस बनना, पेट में दर्द रहना, पेट साफ ना होना इत्यादि होता है तो आपको मयूरासन करना चाहिए। पाचन क्रिया सुचारु रूप से कार्य करती है।
- कब्जियत, गैस आदि पेट से संबंधित सामान्य रोगों का निदान होता है। जिन लोगों को बहुत अधिक कब्ज रहती है उनके लिए मयूरासन से बढ़िया कोई उपाय नहीं। जठराग्नि को प्रदीप्त करता है।
- सामान्य रोगों के अलावा मयूर आसन से आंतों व अन्य अंगों को मजबूती मिलती है। आँतों एवं उससे संबंधित अंगों को मजबूती मिलती है एवं मयूरासन से आमाशय और मूत्राशय के दोषों से मुक्ति मिलती है।
- यह आसन गर्दन और मेरुदंड के लिए भी लाभदायक है।
मयूरासन करते समय सावधानी
- जिन लोगों को ब्लडप्रेशर, टीबी, हृदय रोग, अल्सर और हर्निया रोग की शिकायत हो, वे यह आसन योग चिकित्सक की सलाह के बाद ही करें।
- आमतौर पर मयूरासन उन लोगों को करने के लिए मना किया जाता है जो उच्चे रक्तचाप की समस्या से पीडि़त हैं।
- टी.बी यानी तपेदिक के मरीजों को भी मयूरासन नहीं करना चाहिए।
- हृदय रोग या हार्ट की बीमारियों से ग्रसित लोगों को भी मयूरासन नहीं करना चाहिए। अल्सर और हर्निया रोग से पीड़ित लोगों को भी मयूरासन करने से बचना चाहिए।
13. पद्मासन
पद्मासन बैठ कर किया जाने वाला आसन है, जिसमे दोनों पैर को मोड़कर विपरीत जांघ पर रखा जाता है और दोनों घुटने विपरीत दिशा में रहते हैं। यह एक प्रमाणित आसन है, जो की आमतौर पर ध्यान करने के लिए उपयोग किया जाता है।पद्मासन में शरीर की गतिविधियां रुक जाती हैं जिससे स्थिरता आती है और आपका मन ध्यान में आसानी से लगता है। पद्मासन का अभ्यास नियमित करने से आपको शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से सुख एवं शांति मिलती है। पद्मासन हमें स्थिर बनाकर हमारे शारीरिक और मानसिक तनाव को दूर करता है जिससे हम स्वस्थ रह सकते हैं। इसके अभ्यास से हमारी एकाग्रचित्ता बढ़ती है जिससे हम किसी भी काम को ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकते हैं।
पद्मासन करने से शांत मन और चित प्रसन्न रहता है और इसके अभ्यास से आपका शरीर पूर्ण कमल की तराह खिल उठता है, इसी लिए इस आसन को 'पदम् आसन' के नाम से जाना जाता है। हम सभी को रोजाना कम से कम 5 मिनट पद्मासन का अभ्यास करना चाहिए।
पद्मासन कैसे करें, आसान और सही विधि
- समतल धरातल पर आसन बिछा कर बैठ जाएं, आपकी कमर और गर्दन सीधे हों तथा आपके दोनों पैर सामने की ओर सीधे खुले हों।
- धीरे से अपने दाहिने घुटने को मोड़ें और पैर को आराम से बांयी जांघ पर रख दें, ध्यान रखें की आपकी एड़ी पेट के पास रहे और तलवा ऊपर की तरफ हो।
- इसी तरह से बाएं पैर को आराम से दांयी जांघ पर रखें।
- अगर आपको दूसरे पैर को रखने में तकलीफ हो, तो आप जल्दीबाजी या जबरदस्ती बिलकुल ना करें।
- आपके दोनों पैर मुड़े और आराम से विपरीत जांघों पर रखे हुए हैं, अब आप अपने दोनों हाथों को किसी एक मुद्रा में अपने घुटनों पर रखें।
- ध्यान रखें आपकी कमर और गर्दन सीधे रहेंगें(आराम से सीधे रखें, तने हुए नहीं ) तथा आपके कंधे relax रहेंगे।
- इसी स्थिति में रहकर गहरी सांसें लेते और छोड़ते रहें। सांसों का लेना और छोड़ना आराम से करें जबरदस्ती ना करें।
- 3 से 5 मिनट के बाद आप दूसरे पैर को ऊपर रख कर ये करें।
पद्मासन के साथ ये कुछ मुद्राएँ बहुत कारगर हैं – चिन मुद्रा, चिन्मयी मुद्रा, आदि मुद्रा और ब्रह्म मुद्रा। इनमे से किसी मुद्रा के साथ पद्मासन में बैठ कर कुछ देर साँस लें और शरीर में होने वाली ऊर्जा संचार को अनुभव करें।
पद्मासन अभ्यास के लाभ/फायदे
पदमासन मानव जाती के लिए वरदान है और इसके निरंतर अभ्यास से अनगिनत फायदे हैं, उनमें से कुछ महत्वपूर्ण फायदों को यहाँ जानते हैं:-- पद्मासन मांसपेशियों के तनाव को कम करता है और रक्तचाप को नियंत्रण में लाता है।
- ये आसन आपकी पाचन शक्ति बढ़ाने में मदद करता है जिससे कब्ज दूर होती है।
- पद्मासन के अभ्यास करने से आपका मन शांत और और स्वभाव(चित) प्रसन्न रहता है।
- इस आसन में आप गर्दन और कमर को सीधा रखते हो जिससे आपकी रीढ़ की हड्डी और गर्दन समय के साथ मजबूत होती है।
- पद्मासन से घुटनों और टखनों को खिचाव मिलता है जिससे वो मजबूत होते हैं और ये आसन कूल्हों को खोलता है, जिससे वे अधिक लचीले होते हैं।
- यदि इस आसन का नियमित अभ्यास किया जाए तो sciatica pain में चमत्कारी फायदा मिलता है।
- इस आसन के अभ्यास से आप अपनी चेतना और शारीरिक ऊर्जा को बढ़ा सकते हो।
- ये आसन आपके चेहरे पर चमक बढ़ाता है जिससे आपका चेहरा कमल की तरह खिल उठता है।
पद्मासन के लिए सावधानियां
- आपको कुछ जरूरी बातों और सावधनियों को पदमासन करते समय हमेशा ध्यान रखना चाहिए:-
- आपके घुटने या टखने में चोट या दर्द है तो इस आसन को नहीं करना चाहिए।
- आपको हमेशा किसी अनुभवी योगा टीचर की देख रेख में इस आसन का अभ्यास करना चाहिए, खास तोर पर अगर आप नौसिखिया हैं तो।
- अगर आपको पद्मासन करते समय किसी भी body part में जरूरत से ज्यादा दर्द या खिचाव हो तो भी इसे ना करें।
- अपनी छमता के अनुसार ही अभ्यास करें।
- वैरिकोज नस की समस्या होने पर इसे न करें।
पद्मासन कितने समय तक करना चाहिए
शुरुआत में इसका अभ्यास 1-2 मिनट के लिए करें और धीरे-धीरे आप इसे 20 – 30 मिनट तक बढ़ा सकते हैं। सामान्य परिस्थितियों में यह 5 से 10 मिनट के लिए ही पर्याप्त है। नियमित इतने समय करने से आपको बहुत फायदा होगा।14. पश्चिमोत्तानासन
पश्चिमोत्तानासन को करते समय इसका प्रभाव शरीर के पिछले भाग पर प़डता है। इसलिए इसे पश्चिमोत्तानासन कहते हैं। और यह शब्द संस्कृत से लिया गया है। यह आसन मेरुदंड को लचीला बनाता है। जिससे कुण्डलिनी जागरण में लाभ होता है। यह आसन आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है। पश्चिमोत्तानासन योगासन को शीर्षासन के बाद ही दुसरे स्थान पर लिया गया है।पश्चिमोत्तानासन करने की विधि
- सबसे पहले किसी साफ़ और समतल जमीन पर दरी या कोई कपडा बिछा लें और सीधे लेट जाएँ।
- लेटते समय दोनों पेरों को आपस मैं परस्पर मिला कर रखें और अपने शरीर को सीधा रखें।
- अब अपने दोनों हाथों को सर के पीछे की ओर ले जाएँ।
- अब अपने दोनों हाथों को ज़मीन से ऊपर की और उठाते हुए तेजी से कमर के ऊपर के हिस्से को भी जमीन से उठा लें।
- अब अपने दोनों हाथों को धीरे-धीरे अपने पेरों की तरफ लायें और दोनों पैरों के अंगूठों को पकड़ें। जब ये क्रिया हो रही हो तब अपने दोनों पैरों व् हाथों को सीधा रखें।
- पहली बार में अगर अंगूठा न पकड़ पाएं तो जहां तक अपने हाथों को ले जा सके वहां तक ले जाएँ। बाद में धीरे-धीरे दूरी को कम करते हुए हाथों से पैरों के अंगूठे को पकड़ने की कोशिश करें।
- जब आप इस क्रिया को करने में सफल हो जाएं तो उसके बाद दोनों हाथों के बीच से सिर को नीचे करकें अपनी नाक को धीरे-धीरे घुटनों में लगाने का प्रयास करें।
- अंगूठा पकड़ने की स्थिति में 10 से 12 सैकेंड तक रहें।
- इसके बाद अंगूठे को छोड़कर हाथों को पैरों के ऊपर रखते हुए धीरे-धीरे पीछे की ओर खींच लें। इस क्रम में दोनों हाथों से दोनों पैरों को छूते हुए रखें।
- इस प्रकार यह क्रिया 1 बार पूरी होने के बाद 10 सैकेंड तक आराम करें और पुन: इस क्रिया को दोहराएं इस तरह यह आसन 3 बार ही करें।
- इस आसन को करते समय सांस सामान्य रूप से ले और छोड़ें।
पश्चिमोत्तानासन करने का समय
इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय खाली पेट इस आसन का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। पूरी स्थिति मैं आ जाने के बाद 20-30 सेकंड रुकें। इस आसन को आप 4-5 मिनट तक कर सकते हैं।पश्चिमोत्तानासन के लाभ या फायदे
- तनाव कम करने और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करना बहुत ही जरूरी है।
- पश्चिमोत्तानासन का नियमित रूप से अभ्यास करने से मेरूदंड लचीला व मजबूत बनता है जिससे बुढ़ापे में भी व्यक्ति तनकर चलता है और उसकी रीढ़ की हड्डी झुकती नहीं है।
- यह आसन पेट की चर्बी को कम करने में हमारी मदद करता है।
- सुगर के रोगियों के लिए यह आसन बहुत ही लाभदायक है।
- इस आसन को करने से ब्लड स्र्कुलेसन मैं व्रधि होती है।
- इस आसन के अभ्यास से शरीर की कमजोरी दूर होकर शरीर फुर्तीला बनता है।
- अगर इस आसन को नियमित रूप से किया जाए तो इससे गुर्दे की पथरी ठीक हो जाती है।
- इस आसन से होने वाले वीर्य दोष दूर होते हैं। वीर्य ही शरीर की सप्त धातुओं का राजा माना जाता है।
- इस आसन के नियमित अभ्यास से कब्ज व् एसिडिटी से मुक्ति पायी जा सकती है।
- अगर इस आसन का कोई नियमित रूप से अभ्यास करता है तो उसकी रुकी हुई hight बढ़ने लगती है।
- अगर आपको नीद की समस्या है तो आप इस आसन के अभ्यास से नीद न आने की समस्या से निजात पा सकते हैं।
- इस आसन के अभ्यास से क्रोध दूर होता है। क्यूंकि इस आसन से दिमाग शांत व् तरोताजा बनता है।
- यह आसन पेट की मांसपेशियों को मजबूत करता है।
- इस आसन से शरीर की वायु ठीक रूप से काम करती है।
- इस आसन के नियमित अभ्यास से बौनापन दूर होता है। क्यूंकि इस आसन से शरीर लचीला बनता है।
- इस आसन के नियमित अभ्यास से नितम्बो का मोटापा दूर होकर सुडोल बनते है।
- इस आसन के नियमित अभ्यास से पेट के कीड़े मरते हैं और अच्छी भूख लगने लग जाती है।
पश्चिमोत्तानासन करते समय सावधानी
- इस योगासन को हमेसा खाली पेट ही करें।
- इस आसन की शुरूआती अवस्था में हाथों से अंगूठे को छूने तथा नाक से घुटनों को छूने में परेशानी आ सकती है। अत: इसके लिए जल्दबाजी या जबरदस्ती न करें तथा धीरे-धीरे अभ्यास को पूरा करने की कोशिश करें।
- इस आसन को झटके के साथ कभी भी न करें।
- आंत में सूजन या अपेंडिसाइटिस वाले रोगियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
- जब कमर में तकलीफ हो एवं रीढ़ की हड्डियो में परेशानी मालूम हो उस समय इस योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- जिनके पेट अल्सर की शिकायत हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिये। – पेट के अल्सर का इलाज
- प्रारंभ में यह आसन आधा से एक मिनट तक करें, अभ्यास बढ़ने पर 15 मिनट तक करें।
15. शलभासन
शलभ का अर्थ टिड्डी (Locust ) होता है। इस आसन की अंतिम मुद्रा में शरीर टिड्डी (Locust ) जैसा लगता है, इसलिए इसे इस नाम से जाना जाता है। इसे Locust Pose Yoga भी कहते हैं। यह कमर एवं पीठ दर्द के लिए बहुत लाभकारी आसन है। इसके नियमित अभ्यास से आप कमर दर्द पर बहुत हद तक काबू पा सकते हैं।शलभासन की विधि
शलभासन को कैसे किया जाए ताकि इसका ज़्यदा से ज़्यदा फायदे मिल सके, इसको यहां पर बहुत सरल तरीके में बताया गया है:-शलभासन की प्रक्रिया, तरीका
- सबसे पहले आप पेट के बल लेट जाएं।
- अपने हथेलियों को जांघों के नीचे रखें।
- एड़ियों को आपस में जोड़ लें।
- सांस लेते हुए अपने पैरों को यथासंभव ऊपर ले जाएं।
- धीरे धीरे सांस लें और फिर धीरे धीरे सांस छोड़े और इस अवस्था को बनाएं रखें।
- सांस छोड़ते हुए पांव नीचे लाएं।
- यह एक चक्र हुआ।
- इस तरह से आप 3 से 5 बार करें।
शलभासन के लाभ
वैसे तो शलभासन के बहुत सारे लाभ है लेकिन यहां पर इसके कुछ महत्वपूर्ण फायदे के बारे में बताया जा रहा है:-- कमर दर्द: यह कमर दर्द के लिए अति उत्तम योगाभ्यास है। इसके नियमित अभ्यास से आप पुराने से पुराने कमर दर्द से निजात पा सकते हैं।
- दमा में सहायक: इस आसन के अभ्यास से आप दमा रोग को कण्ट्रोल कर सकते हैं।
- तंत्रिका तंत्र: यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाता है और इसके सक्रियता को बढ़ाता है।
- पेट की मालिश: यह पेट की मालिश करते हुए पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
- कब्ज दूर करने में: कब्ज से निजात पाने के लिए यह लाभकारी योग है।
- रक्त साफ करता है: यह रक्त साफ करता है तथा उसके संचार को बेहतर बनाता है।
- लचीलापन: शरीर के लचीलापन को बढ़ाता है और आपको बहुत सारी परेशानियों से दूर रखता है।
- साइटिका: यह आसन साइटिका को ठीक करने के लिए अहम भूमिका निभाता है।
- वजन कम करने में: यह पेट और कमर की अतरिक्त वसा को कम करता है, इस तरह से वजन कम करने में सहायक है।
- मधुमेह: यह पैंक्रियास को नियंत्रण करता है और मधुमेह के प्रबंधन में सहायक है।
- गर्भाशय: इसके अभ्यास से आप गर्भाशय सम्बंधित परेशानियों को कम कर सकते हैं।
- पेट गैस: इसके अभ्यास से पेट गैस को कम किया जा सकता है।
- नाभि: यह नाभि को सही जगह पर रखता है।
शलभासन की सावधानी
- इस आसन को उच्च रक्तचाप की स्थिति में नहीं करनी चाहिए।
- हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को इस आसन के प्रैक्टिस से बचना चाहिए।
- दमा के रोगियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
- कमर दर्द: ज़्यदा कमर दर्द में इसका अभ्यास न करें।
- शुरुवाती दौर में इसको ज़्यदा देर तक न रोकें।
- हर्निया की स्थिति में इसका अभ्यास न करें।
- मेरुदंड की समस्या में इसे न करें।
- पेट का ऑपरेशन होने पर इसको करने से बचें।
16. शीर्षासन
शीर्षासन का नाम शीर्ष शब्द पर रखा गया है, जिसका मतलब होता है सिर। शीर्षासन को सभ आसनों का राजा माना जाता है। इसे करना शुरुआत में कठिन ज़रूर है लेकिन इसके लाभ अनेक हैं।शीर्षासन करने का तरीका
शीर्षासन करने का तरीका हम यहाँ विस्तार से दे रहे हैं, इसे ध्यानपूर्वक पढ़ें:-- शीर्षासन करने के लिए अपनी योगा मैट या ज़मीन पर कंबल या कोई मोटा तौलिया बिछाकर वज्रासन में बैठ जाएं।
- बाद में इस पर आपको अपना सिर टीकाना है, तो यह आपके सिर को एक नरम पैड देगा।
- अब आगे की ओर झुककर दोनों हाथों की कोहनियों को जमीन पर टिका दें।
- दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में सख्ती से जोड़ लें। इनके बीच में आपको सिर रख कर उसे सहारा देना है।
- अब सिर को दोनों हथेलियों के बीच में धीरे से रखें। सांस सामान्य रखें।
- पैर की उंगलियों पर उपर आ जायें आपका शरीर त्रिकोण मुद्रा में होगा।
- धीरे से आयेज की तरफ पारों को लेकर आयें ताकि आपकी पीठ एकदम सीधी हो जाए -- ज़मीन और आपकी पीठ में 90 डिग्री का ऐंगल होना चाहिए।
- जब पीठ एकदम सीधी हो जाए, धीरे-धीरे शरीर का पूरा वजन बाज़ुओं (फोरआरम) पर डालते हुए शरीर को ऊपर की उठाना शुरू करें।
- पहले टाँगों को सिर्फ़ "आधा" उठायें, ताकि आपके घुटने छाती को छू रहे हूँ और पैर मुड़े हों इस मुद्रा में 1-2 मिनिट रहना का अभ्यास करें और फिर ही अगला स्टेप करें (इस में आपको कुछ हफ्ते या महीने भी लग सकते हैं)।
- जब आप पिछले स्टेप में निपुण हो जायें, फिर दोनो टाँगों को सीधा उपर उठाने की कोशिश करें। कोशिश करें की कम से कम भार सिर पर लें। शरीर को सीधा कर लें।
- शुरुआत में कुल मिला कर पाँच बार साँस अंदर लें और बाहर छोड़ें ताकि आप आसन में 30 सेकेंड तक रह सकें।
- धीरे धीरे जैसे आपके शरीर में ताक़त बढ़ने लगे, आप समय बढ़ा सकते हैं — 5 मिनिट से ज़्यादा ना करें।
- 30 सेकेंड से 5 मिनिट का सफ़र तय करने में आपको कुछ महीने या साल भी लग सकते हैं तो जल्दबाज़ी ना करें!
शीर्षासन करने का आसान तरीका
- अगर आपको अपने आप को संतुलित रखने में कठिनाई आ रही हो तो दीवार का सहारा ले सकते हैं (नीचे दी गयी फोटो देखें)।
- अगर आपको टाँगों को सीधा उपर रखने में कठिनाई हो तो टाँगों को उपर ले जायें अपनी टाँगों को मोड़ कर रखें ताकि आपके घुटने आपकी छाती को छू रहे हों।
- जब आपको पूरा आत्मविश्वास हो की आपका संतुलन बना रह सकता है, तभी दोनो टाँगों को उपर लेकर जायें, या दीवार से हट कर अभ्यास करें।
शीर्षासन करने में क्या सावधानी बरती जाए
- आपको शीर्षासन का ज़्यादा अभ्यासञहीँ है, या पहली बार कर रहें हैं, तो किसी अनुभवी टीचर के साथ करें ताकि वह चोट लगने से बचा सके।
- अगर आपको पीठ या गर्दन में चोट, सिरदर्द, हृदय रोग, उच्च रक्त चाप, माहवारी, या लो बीपी हो तो शीर्षासन ना करें।
- शीर्षासन के बाद बालासन ज़रूर करें।
- अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक ज़ोर न लगायें।
शीर्षासन के फायदे
- दिमाग़ को शांत करता है और तनाव और हल्के अवसाद से राहत देने में मदद करता है।
- शीर्षासन पिट्यूटरी और पीनियल ग्रंथियों को उत्तेजित करता है।
- हाथों, टाँगों, और रीढ़ की हड्डी को मज़बूत करता है।
- शीर्षासन फेफड़ों की कार्यकौशलता बढ़ाता है।
- शीर्षासन से पाचन अंगों पर सकारात्मक असर होता है जिस से कब्ज़ में राहत मिलती है।
- अस्थमा, अनिद्रा, और साइनस के लिए चिकित्सीय है।
17. त्रिकोणासन
त्रिकोणासन संस्कृत के दो शब्दों 'त्रिकोण' और 'आसन' से मिलकर बना है। इसका मतलब त्रिकोण होता है। त्रिकोणासन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, और इस आसने को करने से सेहत को कई फायदे होते हैं। यह आसन व्यक्ति को ऊर्जा से भर देता है और नियमित क्रिया से लिए अधिक स्टैमिना प्रदान करता है। जिससे कि हम पूरे दिन ज्यादा सक्रिय होकर काम कर पाते हैं।त्रिकोणासन शरीर के विभिन्न भागों जैसे पेट, कूल्हों और कमर से चर्बी को घटाने के लिए भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। त्रिकोणासन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे किसी भी समय किसी भी स्थान पर आसानी से किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति बिना किसी तैयारी के इस आसन का नियमित अभ्यास आसानी से कर सकता है।
ऑफिस में लंबे समय तक बैठकर काम करने वाले या कारखानों में मशीन चलाने वाले ज्यादातर लोग काम के दौरान ही थोड़ी देर इस अभ्यास को करके एनर्जी प्राप्त कर लेते हैं और फिर से अधिक सक्रिय होकर काम करते हैं।
त्रिकोणासन करने का तरीका
- अपने पैरों को चौड़ा करके बिल्कुल सीधे खड़े हो जाएं।
- अपनी लंबाई के हिसाब से दोनों पैरों के बीच कम से कम दो या तीन फीट उचित स्थान बनाकर खड़े रहें।
- अपनी रीढ़ को मोड़ें नहीं बल्कि एकदम सीधे खड़े रहें। इसके बाद अपनी भुजाओं को फर्श के समानांतर लाएं और अपनी हथेली को नीचे की ओर ले जाते हुए सांस लें।
- अब धीरे- धीरे सांस छोड़ें और अपने शरीर को बायीं ओर मोड़ें और अपनी बायीं हाथ की उंगली से फर्श को छूएं और बाएं टखने को स्पर्श करें।
- आपका दाहिना हाथ बिल्कुल सीधे होना चाहिए। अब अपने सिर को घुमाएं और दाहिने हाथ की उंगली की नोक को देखें।
- इस मुद्रा को पांच से सात बार दोहराएं और फिर गहरी सांस लेते हुए हाथों को बिल्कुल सीधे करते हुए एकदम सीधे पहले की तरह खड़े हो जाएं। अब कम से कम पांच से दस बार गहरी सांस लें।
- सांस छोड़ दें और अपने कूल्हे को दाहिनी ओर झुकाएं और दाहिने हाथ की उंगली से फर्श को छूएं और दाहिने हाथ दाहिने पैर के टखने को जरूर छूना चाहिए।
- दस सेकंड के लिए इसी मुद्रा में रहें।
- उसके बाद हाथों को सीधा रख अपने स्थान पर खड़े हो जाएं और सांस (inhale) लें।
- अगर आप दोनों तरफ से यह आसन करते हैं तो इसे त्रिकोणासन का एक राउंड कहा जाता है।
- जब हम इस आसन को छह राउंड तक करते हैं तो इसे त्रिकोणासाना कहा जाता है।
त्रिकोणासन करने के फायदे
- बॉडी फैट को कम करने में त्रिकोणासन बहुत उपयोगी है। अगर किसी व्यक्ति का वजन तेजी से बढ़ रहा हो और वह मोटापे से परेशान हो तो यह आसन उसके लिए रामबाण साबित होगा।
- अगर आप पीठ में दर्द की समस्या से ग्रस्त हैं तो त्रिकोणासन आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। करीब दो हफ्तों तक नियमित त्रिकोणासन करने से पीठ के दर्द से मुक्ति मिल सकती है।
- 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे यदि नियमित त्रिकोणासन करें तो यह आसन उनकी लंबाई (Height) को बढ़ाने में भी काफी सहायक होता है।
- नियमित रूप से प्रतिदिन त्रिकोणासन (Trikonasana) करने से पैरों एवं घुटनों के अलावा कूल्हों एवं गर्दन, रीढ़ और टखनों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। इसके अलावा यह आसन कंधों और सीने को चौड़ा बनाने में मदद करता है।
- रोज-रोज त्रिकोणासन करने से शरीर को स्टैमिना (stamina) और एनर्जी मिलती है इसके अलावा यह आसन नाभि को ठीक रखने में भी सहायक होता है।
त्रिकोणासन करते समय बरतें ये सावधानियां
- अगर आपको गंभीर पीठ दर्द की समस्या या गर्दन में दर्द रहता है तो त्रिकोणासन को करने से परहेज करें।
- माइग्रेन (migrane) से पीड़ित व्यक्तियों को भी इस आसन को नहीं करना चाहिए।
- अगर किसी व्यक्ति को डायरिया, उच्च रक्तचाप की समस्या हो और पीठ में पहले कभी चोट लगी हो तो ऐसे व्यक्ति को त्रिकोणासन नहीं करना चाहिए।
- जिन लोगों को चक्कर आता हो या योगासन के दौरान बेहोशी की समस्या हो उन्हें त्रिकोणासन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
- त्रिकोणासन करते समय घुटनों का सहारा न लें और ना ही इसपर कोई दबाव दें अन्यथा इसकी वजह से आपके घुटनों में दर्द हो सकता है।
- यदि आपको हृदय (Heart) से संबंधित कोई भी समस्या हो तो त्रिकोणासन को करने से बचें।
18. ऊर्ध्व सर्वांगासन
सर्व-अंग एवं आसन अर्थात सर्वांगासम। इस आसन को करने से सभी अंगों को व्यायाम मिलता है इसीलिए इसे सर्वांगासन कहते हैं।सर्वांगासम में सावधानी
- कोहनियाँ भूमि पर टिकी हुई हों और पैरों को मिलाकर सीधा रखें।
- पंजे ऊपर की ओर तने हुए एवं आँखें बंद हों अथवा पैर के अँगूठों पर दॄष्टि रखें।
- जिन लोगों को गर्दन या रीढ़ में शिकायत हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए।
सर्वांगासम के लाभ
- थायराइड एवं पिच्युटरी ग्लैंड के मुख्य रूप से क्रियाशील होने से यह कद वृद्धि में लाभदायक है।
- दमा, मोटापा, दुर्बलता एवं थकानादि विकार दूर होते है।
- इस आसन का पूरक आसन मत्स्यासन है, अतः शवासन में विश्राम से पूर्व मत्स्यासन करने से इस आसन से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।
19. उष्ट्रासन
'उष्ट्र' एक संस्कृत भाषा का शब्द है और इसका अर्थ 'ऊंट' होता है। उष्ट्रासन को अंग्रेजी में 'Camel Pose' कहा जाता है। उष्ट्रासन एक मध्यवर्ती पीछे झुकने-योग आसन है जो अनाहत (ह्रदय चक्र) को खोलता है। इस आसन से शरीर में लचीलापन आता है, शरीर को ताकत मिलती है तथा पाचन शक्ति बढ़ जाती है। उष्ट्रासन करने की प्रक्रिया और उष्ट्रासन के लाभ नीचे दिए गए हैं :उष्ट्रासन करने की प्रक्रिया
- अपने योग मैट पर घुटने के सहारे बैठ जाएं और कुल्हे पर दोनों हाथों को रखें।
- घुटने कंधो के समानांतर हो तथा पैरों के तलवे आकाश की तरफ हो।
- सांस लेते हुए मेरुदंड को पुरोनितम्ब की ओर खींचे जैसे कि नाभि से खींचा जा रहा है।
- गर्दन पर बिना दबाव डालें तटस्थ बैठे रहें
- इसी स्थिति में कुछ सांसे लेते रहे।
- सांस छोड़ते हुए अपने प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं।
- हाथों को वापस अपनी कमर पर लाएं और सीधे हो जाएं।
- शुरूआत में यह आसन किस प्रकार करें
- अपनी सुविधा के लिए आप अपने घुटनों के नीचे तकिए का प्रयोग कर सकते हैं।
उष्ट्रासन के लाभ
- पाचन शक्ति बढ़ता है।
- सीने को खोलता है और उसको मज़बूत बनाता है।
- पीठ और कंधों को मजबूती देता है।
- पीठ के निचले हिस्से में दर्द से छुटकारा दिलाता है।
- रीढ़ की हड्डी में लचीलेपन एवं मुद्रा में सुधार भी लाता है।