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Tuesday, September 8, 2020

कक्षा - 5 हिन्दी पाठ - डाकिए की कहानी, कंवरसिंह की जुबानी सारांश

 


डाकिए की कहानी ,कंवरसिंह की जुबानी Summary Class 5 Hindi

डाकिए की कहानी ,कंवरसिंह की जुबानी पाठ का सारांश

शिमला के मालरोड पर स्थिति जनरल पोस्ट ऑफिस के एक कमरे में डाक छाँटने का काम चल रहा है। सुबह के 11:30 बजे हैं। डाक छाँटने का काम दो पैकर और तीन महिला डाकिया कर रहे हैं। वहीं पर विराजमान हैं कँवरसिंह, जिन्हें भारत सरकार से पुरस्कार मिल चुका है। हमारी लेखिका प्रतीमा शर्मा ने उनसे बातचीत की जिसे संक्षेप में नीचे दिया जा रहा है-

कँवरसिंह हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गाँव के निवासी हैं। उनकी उम्र पैंतालीस साल है। उनके चार बच्चे हैं–तीन लड़कियाँ और एक लड़का। दो लड़कियों की शादी हो चुकी है। उनके गाँव में अभी तक बस नहीं पहुँच पाती है। हिमाचल में हजारों ऐसे गाँव हैं जहाँ पैदल चलकर ही पहुँचा जा सकता है। कँवरसिंह के बच्चे गाँव के स्कूल में पढ़ने जाते हैं जो लगभग पाँच किलोमीटर दूर है। पहले वे भारतीय डाक सेवा में ग्रामीण डाक सेवक थे। अब वे पैकर हैं। लेखिका द्वारा यह पूछने पर कि उन्हें क्या-क्या करना होता है, कँवरसिंह ने बताया कि वे चिट्ठियाँ, रजिस्टरी पत्र, पार्सल, बिल, बूढ़े लोगों की पेंशन आदि छोड़ने गाँव-गाँव जाते हैं। सूचना और संदेश देने के बहुत से नए तरीके आ जाने के बावजूद गाँव में आज भी संदेश पहुँचाने का सबसे बड़ा साधन डाक ही है।

हमारे देश की डाक सेवा आज भी दुनिया में सबसे बड़ी डाक सेवा है और सबसे सस्ती भी। यह पूछने पर कि क्या उन्हें अपनी नौकरी में मजा आता है; उन्होंने बताया कि बेशक उन्हें अपनी नौकरी अच्छी लगती है क्योंकि उन्हें मनीआर्डर पहुँचाने पर, नियुक्ति पत्र का रजिस्टरी पत्र पहुँचाने पर, पेंशन पहुंचाने पर लोगों का खुशी भरा चेहरा देखने को मिलता है।

प्रारंभ में उसने लाहौल स्पीति जिले के किब्बर गाँव में तीन साल नौकरी की इसके बाद पाँच साल तक इसी जिले के काज़ा में और पाँच साल तक किन्नौर जिले में नौकरी की। गाँवों में डाकसेवक का बहुत मान किया जाता है। पहाड़ी इलाकों में डाक पहुँचाना काफी मुश्किल काम है किन्नौर और लाहौल स्पीति हिमाचल प्रदेश के बहुत ठंडे तथा ऊँचे जिले हैं। इन जिलों में उसे एक घर से दूसरे घर तक डाक पहुँचाने के लिए लगभग 26 किलोमीटर रोज़ाना चलना पड़ता था। कँवरसिंह अभी पैकर हैं। डाकिया बनने के लिए एक इम्तिहान पास करना पड़ता है। फिलहाल पैकर के काम के हिसाब से उनका वेतन काफी कम है। सारा दिन कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले बाबू का वेतन कहीं ज्यादा है। डाकियों पर काम का बोझ बहुत ज्यादा रहता है।

जब लेखिका ने कँवरसिंह से पूछा कि काम के दौरान क्या कभी कोई खास बात हुई है, तो उसने एक घटना सुनाना शुरू कर दिया, जो इस प्रकार है

“तब मेरा तबादला शिमला के जनरल पोस्ट ऑफिस में हो गया था। वहाँ मुझे रात के समय रेस्ट हाउस और पोस्ट ऑफिस चौकीदारी का काम दिया गया था। यह 29 जनवरी 1998 की बात है। रात लगभग साढ़े दस बजे का समय था। किसी ने दरवाजा खटखटाया। खोलने पर पाँच-छह लोग अंदर घुस आए और मुझे पीटना शुरू कर दिए। मेरा सिर फट गया और मैं बेहोश हो गया। अगले दिन जब मुझे होश आया तो मैं शिमला के इंदिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में दाखिल था। मेरे सिर पर कई टाँके लगे थे। उसकी वजह से आज भी मेरी एक आँख से दिखाई नहीं देता।”

सरकार ने जान पर खेलकर डाक की चीजें बचाने के लिए उसे ‘बेस्ट पोस्टमैन’ का इनाम दिया। यह इनाम 2004 में मिला। इस इनाम में 500 रुपये और प्रशस्ति पत्र मिला। कँवरसिंह को इस बात पर गर्व है कि वह ‘बेस्ट पोस्टमैन’ है।

शब्दार्थ : ज़रिया-साधन। तबादला-स्थानान्तरण। भयंकर-बहुत तेज । इनाम-पुरस्कार । प्रशस्ति पत्र-प्रशंसा के पत्र। बेस्ट पोस्टमैन-सबसे अच्छा डाकिया।

कक्षा - 5 हिन्दी पाठ - चिट्ठी का सफ़र सारांश


 

चिटठी का सफर Summary Class 5 Hindi

चिटठी का सफर पाठ का सारांश

पत्रों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पत्र लिखने की परम्परा बहुत पुरानी है। पत्र जिसके पास लिखा जा रहा है उस तक उचित समय पर पहुँच जाए, इसके लिए हम उस पर डाक टिकट लगाते हैं और पूरा एवं ठीक पता लिखते हैं। फिर पते में सबसे छोटी भौगोलिक इकाई से शुरू करके बड़ी की ओर बढ़ते हैं। छोटी से बड़ी भौगोलिक इकाई का मतलब है घर के नंबर के बाद गली-मोहल्ले का नाम, फिर गाँव, कस्बे, शहर के जिस हिस्से में है उसका नाम, फिर गाँव या शहर का नाम। शहर के नाम के बाद पिनकोड लिखा जाता है। पिनकोड लिखने से गंतव्य स्थान का पता लगाने में डाक छाँटने वाले कर्मचारियों को मदद मिलती है और पत्र जल्दी जल्दी बाँटे जा सकते हैं।

पिनकोड की शुरूआत 15 अगस्त 1972 को डाकतार विभाग ने पोस्टल नंबर योजना के नाम से की। ‘पिन’ शब्द पोस्टल इंडेक्स नंबर (Postal Index Number) का छोटा रूप है। किसी भी स्थान का पिनकोड 6 अंकों का होता है। हर अंक का एक खास स्थानीय अर्थ है। उदाहरण के लिए पिनकोड 110016 लें। इसमें पहले स्थान पर दिया गया अंक यानि 1 यह बताता है कि यह पिनकोड दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब या जम्मू-कश्मीर का है। अगले दो अंक यानि 10 यह तय करते हैं कि यह दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के उपक्षेत्र दिल्ली का कोड है। अगले तीन अंक 016 दिल्ली उपक्षेत्र के ऐसे डाकघर का कोड है जहाँ से डाक बाँटी जाती है।

समय के साथ डाक सेवाओं में निरंतर बदलाव और विकास होता रहा है। पुराने समय में कबूतरों के द्वारा संदेश भेजे जाते थे। जब संचार और परिवहन के साधन बेहद सीमित थे तब हरकारे पैदल चलकर आम आदमी तक चिट्ठी-पत्री पहुँचाते थे। राजा-महाराजाओं के पास घुड़सवार हरकारे होते थे। इन हरकारों को न केवल हर तरह की जगहों पर पहुँचना होता था बल्कि डाकू, लुटेरों या जंगली जानवरों से डाक की रक्षा भी करनी होती थी। आज भी भारतीय डाकसेवा दुर्गम इलाकों तक डाक पहुँचाने के लिए हरकारों पर निर्भर करती है।

आजकल संदेश भेजने के नए-नए और तेज साधन उपलब्ध हैं जिसके परिणामस्वरूप डाक विभाग पत्र, मनीआर्डर, ई-मेल, बधाई कार्ड आदि लोगों तक पहुँचा रहा है।

यह सोचकर बड़ी हैरानी होती है कि कबूतर जैसा पक्षी संदेशवाहक का काम कैसे करता होगा। दरअसल कबूतर की सभी प्रजातियाँ संदेश ले जाने का काम नहीं करती। केवल गिरहबाज या हूमर नामक प्रजाति को ही प्रशिक्षित करके डाक संदेश भेजने के काम में लाया जा सकता है। उड़ीसा पुलिस आज भी हूमर कबूतरों का इस्तेमाल राज्य के कई दुर्गम इलाकों में संदेश पहुँचाने के लिए कर रही है। कबूतरों की संदेश सेवा बहुत सस्ती है और उन पर खास खर्च नहीं आता है। इन कबूतरों का जीवन 15-20 साल होता है।

शब्दार्थ : सफ़र-यात्रा। गौर से-ध्यान से। भौगोलिक-भूगोल से संबंधित। गंतव्य-पहुँचने का स्थान। जाहिर है-स्पष्ट है। निरंतर-लगातार। बेहद-बहुते। हरकारे-पैदल चलकर संदेश पहुँचाने वाले। दुर्गम-कठिन। दिलचस्प-मजेदार। प्रजाति-किस्म। प्रशिक्षित-अच्छी तरह सीखे हुए। प्रवासी-अपने देश या शहर से बाहर जाकर रहने वाले।