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Tuesday, September 8, 2020

कक्षा - 5 हिन्दी पाठ - चिट्ठी का सफ़र सारांश


 

चिटठी का सफर Summary Class 5 Hindi

चिटठी का सफर पाठ का सारांश

पत्रों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पत्र लिखने की परम्परा बहुत पुरानी है। पत्र जिसके पास लिखा जा रहा है उस तक उचित समय पर पहुँच जाए, इसके लिए हम उस पर डाक टिकट लगाते हैं और पूरा एवं ठीक पता लिखते हैं। फिर पते में सबसे छोटी भौगोलिक इकाई से शुरू करके बड़ी की ओर बढ़ते हैं। छोटी से बड़ी भौगोलिक इकाई का मतलब है घर के नंबर के बाद गली-मोहल्ले का नाम, फिर गाँव, कस्बे, शहर के जिस हिस्से में है उसका नाम, फिर गाँव या शहर का नाम। शहर के नाम के बाद पिनकोड लिखा जाता है। पिनकोड लिखने से गंतव्य स्थान का पता लगाने में डाक छाँटने वाले कर्मचारियों को मदद मिलती है और पत्र जल्दी जल्दी बाँटे जा सकते हैं।

पिनकोड की शुरूआत 15 अगस्त 1972 को डाकतार विभाग ने पोस्टल नंबर योजना के नाम से की। ‘पिन’ शब्द पोस्टल इंडेक्स नंबर (Postal Index Number) का छोटा रूप है। किसी भी स्थान का पिनकोड 6 अंकों का होता है। हर अंक का एक खास स्थानीय अर्थ है। उदाहरण के लिए पिनकोड 110016 लें। इसमें पहले स्थान पर दिया गया अंक यानि 1 यह बताता है कि यह पिनकोड दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब या जम्मू-कश्मीर का है। अगले दो अंक यानि 10 यह तय करते हैं कि यह दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के उपक्षेत्र दिल्ली का कोड है। अगले तीन अंक 016 दिल्ली उपक्षेत्र के ऐसे डाकघर का कोड है जहाँ से डाक बाँटी जाती है।

समय के साथ डाक सेवाओं में निरंतर बदलाव और विकास होता रहा है। पुराने समय में कबूतरों के द्वारा संदेश भेजे जाते थे। जब संचार और परिवहन के साधन बेहद सीमित थे तब हरकारे पैदल चलकर आम आदमी तक चिट्ठी-पत्री पहुँचाते थे। राजा-महाराजाओं के पास घुड़सवार हरकारे होते थे। इन हरकारों को न केवल हर तरह की जगहों पर पहुँचना होता था बल्कि डाकू, लुटेरों या जंगली जानवरों से डाक की रक्षा भी करनी होती थी। आज भी भारतीय डाकसेवा दुर्गम इलाकों तक डाक पहुँचाने के लिए हरकारों पर निर्भर करती है।

आजकल संदेश भेजने के नए-नए और तेज साधन उपलब्ध हैं जिसके परिणामस्वरूप डाक विभाग पत्र, मनीआर्डर, ई-मेल, बधाई कार्ड आदि लोगों तक पहुँचा रहा है।

यह सोचकर बड़ी हैरानी होती है कि कबूतर जैसा पक्षी संदेशवाहक का काम कैसे करता होगा। दरअसल कबूतर की सभी प्रजातियाँ संदेश ले जाने का काम नहीं करती। केवल गिरहबाज या हूमर नामक प्रजाति को ही प्रशिक्षित करके डाक संदेश भेजने के काम में लाया जा सकता है। उड़ीसा पुलिस आज भी हूमर कबूतरों का इस्तेमाल राज्य के कई दुर्गम इलाकों में संदेश पहुँचाने के लिए कर रही है। कबूतरों की संदेश सेवा बहुत सस्ती है और उन पर खास खर्च नहीं आता है। इन कबूतरों का जीवन 15-20 साल होता है।

शब्दार्थ : सफ़र-यात्रा। गौर से-ध्यान से। भौगोलिक-भूगोल से संबंधित। गंतव्य-पहुँचने का स्थान। जाहिर है-स्पष्ट है। निरंतर-लगातार। बेहद-बहुते। हरकारे-पैदल चलकर संदेश पहुँचाने वाले। दुर्गम-कठिन। दिलचस्प-मजेदार। प्रजाति-किस्म। प्रशिक्षित-अच्छी तरह सीखे हुए। प्रवासी-अपने देश या शहर से बाहर जाकर रहने वाले।


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