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Tuesday, September 8, 2020

कक्षा - 5 हिन्दी पाठ - डाकिए की कहानी, कंवरसिंह की जुबानी सारांश

 


डाकिए की कहानी ,कंवरसिंह की जुबानी Summary Class 5 Hindi

डाकिए की कहानी ,कंवरसिंह की जुबानी पाठ का सारांश

शिमला के मालरोड पर स्थिति जनरल पोस्ट ऑफिस के एक कमरे में डाक छाँटने का काम चल रहा है। सुबह के 11:30 बजे हैं। डाक छाँटने का काम दो पैकर और तीन महिला डाकिया कर रहे हैं। वहीं पर विराजमान हैं कँवरसिंह, जिन्हें भारत सरकार से पुरस्कार मिल चुका है। हमारी लेखिका प्रतीमा शर्मा ने उनसे बातचीत की जिसे संक्षेप में नीचे दिया जा रहा है-

कँवरसिंह हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गाँव के निवासी हैं। उनकी उम्र पैंतालीस साल है। उनके चार बच्चे हैं–तीन लड़कियाँ और एक लड़का। दो लड़कियों की शादी हो चुकी है। उनके गाँव में अभी तक बस नहीं पहुँच पाती है। हिमाचल में हजारों ऐसे गाँव हैं जहाँ पैदल चलकर ही पहुँचा जा सकता है। कँवरसिंह के बच्चे गाँव के स्कूल में पढ़ने जाते हैं जो लगभग पाँच किलोमीटर दूर है। पहले वे भारतीय डाक सेवा में ग्रामीण डाक सेवक थे। अब वे पैकर हैं। लेखिका द्वारा यह पूछने पर कि उन्हें क्या-क्या करना होता है, कँवरसिंह ने बताया कि वे चिट्ठियाँ, रजिस्टरी पत्र, पार्सल, बिल, बूढ़े लोगों की पेंशन आदि छोड़ने गाँव-गाँव जाते हैं। सूचना और संदेश देने के बहुत से नए तरीके आ जाने के बावजूद गाँव में आज भी संदेश पहुँचाने का सबसे बड़ा साधन डाक ही है।

हमारे देश की डाक सेवा आज भी दुनिया में सबसे बड़ी डाक सेवा है और सबसे सस्ती भी। यह पूछने पर कि क्या उन्हें अपनी नौकरी में मजा आता है; उन्होंने बताया कि बेशक उन्हें अपनी नौकरी अच्छी लगती है क्योंकि उन्हें मनीआर्डर पहुँचाने पर, नियुक्ति पत्र का रजिस्टरी पत्र पहुँचाने पर, पेंशन पहुंचाने पर लोगों का खुशी भरा चेहरा देखने को मिलता है।

प्रारंभ में उसने लाहौल स्पीति जिले के किब्बर गाँव में तीन साल नौकरी की इसके बाद पाँच साल तक इसी जिले के काज़ा में और पाँच साल तक किन्नौर जिले में नौकरी की। गाँवों में डाकसेवक का बहुत मान किया जाता है। पहाड़ी इलाकों में डाक पहुँचाना काफी मुश्किल काम है किन्नौर और लाहौल स्पीति हिमाचल प्रदेश के बहुत ठंडे तथा ऊँचे जिले हैं। इन जिलों में उसे एक घर से दूसरे घर तक डाक पहुँचाने के लिए लगभग 26 किलोमीटर रोज़ाना चलना पड़ता था। कँवरसिंह अभी पैकर हैं। डाकिया बनने के लिए एक इम्तिहान पास करना पड़ता है। फिलहाल पैकर के काम के हिसाब से उनका वेतन काफी कम है। सारा दिन कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले बाबू का वेतन कहीं ज्यादा है। डाकियों पर काम का बोझ बहुत ज्यादा रहता है।

जब लेखिका ने कँवरसिंह से पूछा कि काम के दौरान क्या कभी कोई खास बात हुई है, तो उसने एक घटना सुनाना शुरू कर दिया, जो इस प्रकार है

“तब मेरा तबादला शिमला के जनरल पोस्ट ऑफिस में हो गया था। वहाँ मुझे रात के समय रेस्ट हाउस और पोस्ट ऑफिस चौकीदारी का काम दिया गया था। यह 29 जनवरी 1998 की बात है। रात लगभग साढ़े दस बजे का समय था। किसी ने दरवाजा खटखटाया। खोलने पर पाँच-छह लोग अंदर घुस आए और मुझे पीटना शुरू कर दिए। मेरा सिर फट गया और मैं बेहोश हो गया। अगले दिन जब मुझे होश आया तो मैं शिमला के इंदिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में दाखिल था। मेरे सिर पर कई टाँके लगे थे। उसकी वजह से आज भी मेरी एक आँख से दिखाई नहीं देता।”

सरकार ने जान पर खेलकर डाक की चीजें बचाने के लिए उसे ‘बेस्ट पोस्टमैन’ का इनाम दिया। यह इनाम 2004 में मिला। इस इनाम में 500 रुपये और प्रशस्ति पत्र मिला। कँवरसिंह को इस बात पर गर्व है कि वह ‘बेस्ट पोस्टमैन’ है।

शब्दार्थ : ज़रिया-साधन। तबादला-स्थानान्तरण। भयंकर-बहुत तेज । इनाम-पुरस्कार । प्रशस्ति पत्र-प्रशंसा के पत्र। बेस्ट पोस्टमैन-सबसे अच्छा डाकिया।

कक्षा - 5 हिन्दी पाठ - चिट्ठी का सफ़र सारांश


 

चिटठी का सफर Summary Class 5 Hindi

चिटठी का सफर पाठ का सारांश

पत्रों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पत्र लिखने की परम्परा बहुत पुरानी है। पत्र जिसके पास लिखा जा रहा है उस तक उचित समय पर पहुँच जाए, इसके लिए हम उस पर डाक टिकट लगाते हैं और पूरा एवं ठीक पता लिखते हैं। फिर पते में सबसे छोटी भौगोलिक इकाई से शुरू करके बड़ी की ओर बढ़ते हैं। छोटी से बड़ी भौगोलिक इकाई का मतलब है घर के नंबर के बाद गली-मोहल्ले का नाम, फिर गाँव, कस्बे, शहर के जिस हिस्से में है उसका नाम, फिर गाँव या शहर का नाम। शहर के नाम के बाद पिनकोड लिखा जाता है। पिनकोड लिखने से गंतव्य स्थान का पता लगाने में डाक छाँटने वाले कर्मचारियों को मदद मिलती है और पत्र जल्दी जल्दी बाँटे जा सकते हैं।

पिनकोड की शुरूआत 15 अगस्त 1972 को डाकतार विभाग ने पोस्टल नंबर योजना के नाम से की। ‘पिन’ शब्द पोस्टल इंडेक्स नंबर (Postal Index Number) का छोटा रूप है। किसी भी स्थान का पिनकोड 6 अंकों का होता है। हर अंक का एक खास स्थानीय अर्थ है। उदाहरण के लिए पिनकोड 110016 लें। इसमें पहले स्थान पर दिया गया अंक यानि 1 यह बताता है कि यह पिनकोड दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब या जम्मू-कश्मीर का है। अगले दो अंक यानि 10 यह तय करते हैं कि यह दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के उपक्षेत्र दिल्ली का कोड है। अगले तीन अंक 016 दिल्ली उपक्षेत्र के ऐसे डाकघर का कोड है जहाँ से डाक बाँटी जाती है।

समय के साथ डाक सेवाओं में निरंतर बदलाव और विकास होता रहा है। पुराने समय में कबूतरों के द्वारा संदेश भेजे जाते थे। जब संचार और परिवहन के साधन बेहद सीमित थे तब हरकारे पैदल चलकर आम आदमी तक चिट्ठी-पत्री पहुँचाते थे। राजा-महाराजाओं के पास घुड़सवार हरकारे होते थे। इन हरकारों को न केवल हर तरह की जगहों पर पहुँचना होता था बल्कि डाकू, लुटेरों या जंगली जानवरों से डाक की रक्षा भी करनी होती थी। आज भी भारतीय डाकसेवा दुर्गम इलाकों तक डाक पहुँचाने के लिए हरकारों पर निर्भर करती है।

आजकल संदेश भेजने के नए-नए और तेज साधन उपलब्ध हैं जिसके परिणामस्वरूप डाक विभाग पत्र, मनीआर्डर, ई-मेल, बधाई कार्ड आदि लोगों तक पहुँचा रहा है।

यह सोचकर बड़ी हैरानी होती है कि कबूतर जैसा पक्षी संदेशवाहक का काम कैसे करता होगा। दरअसल कबूतर की सभी प्रजातियाँ संदेश ले जाने का काम नहीं करती। केवल गिरहबाज या हूमर नामक प्रजाति को ही प्रशिक्षित करके डाक संदेश भेजने के काम में लाया जा सकता है। उड़ीसा पुलिस आज भी हूमर कबूतरों का इस्तेमाल राज्य के कई दुर्गम इलाकों में संदेश पहुँचाने के लिए कर रही है। कबूतरों की संदेश सेवा बहुत सस्ती है और उन पर खास खर्च नहीं आता है। इन कबूतरों का जीवन 15-20 साल होता है।

शब्दार्थ : सफ़र-यात्रा। गौर से-ध्यान से। भौगोलिक-भूगोल से संबंधित। गंतव्य-पहुँचने का स्थान। जाहिर है-स्पष्ट है। निरंतर-लगातार। बेहद-बहुते। हरकारे-पैदल चलकर संदेश पहुँचाने वाले। दुर्गम-कठिन। दिलचस्प-मजेदार। प्रजाति-किस्म। प्रशिक्षित-अच्छी तरह सीखे हुए। प्रवासी-अपने देश या शहर से बाहर जाकर रहने वाले।


कक्षा - 5 पाठ- जहां चाह वहां राह सारांश

 



जहाँ चाह वहाँ राह Summary Class 5 Hindi

जहाँ चाह वहाँ राह पाठ का सारांश

इला सचानी छब्बीस साल की हैं। वह गुजरात के सूरत जिले में रहती हैं। वे अपंग हैं। उनके हाथ काम नहीं करते। लेकिन इससे इला जरा भी निरुत्साहित नहीं हुईं। उसने अपने हाथों की इस कमी को तहे-दिल से स्वीकार करते हुए अपने पैरों से काम करना सीखा। दाल-भात खाना। दूसरों के बाल बनाना, फर्श बुहारना, कपड़े धोना, तरकारी काटना, तख्ती पर लिखना जैसे काम उसने पैरों से करना सीखा। उसने एक स्कूल में दाखिला ले लिया। पहले तो सभी उसकी सुरक्षा और उसके काम की गति को लेकर काफी चिंतित थे। लेकिन जिस फुर्ती से इला कोई काम करती थी, उसे देखकर सभी हैरान रह जाते थे। कभी-कभी किसी काम में परेशानी जरूर आती थी लेकिन इला इन परेशानियों के आगे झुकने वाली नहीं थी। उसने दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की परन्तु दसवीं की परीक्षा पास नहीं कर पाई क्योंकि वह दिए गए समय में लिखने का काम पूरा नहीं कर पाई। समय रहते अगर उसे यह मालूम हो जाता कि उसे ऐसे व्यक्ति की सुविधा मिल सकती थी जो परीक्षा में उसके लिए लिखने का काम कर सके तो शायद उसे परीक्षा में असफलता का मुँह नहीं देखना पड़ता। उसे इस बात का बेहद दुःख है।

इला की माँ और दादी कशीदाकारी करती थीं। वह उन्हें सुई में रेशम पिरोने से लेकर बूटियाँ उकेरते हुए देखती। और एक दिन उसने कशीदाकारी करने की ठान ली, वह भी पैरों से। दोनों अंगूठों के बीच सुई थामकर कच्चा रेशम पिरोने जैसा कठिन कार्य उसने काफी धैर्य और विश्वास से करना शुरू किया। पन्द्रह-सोलह साल के होते-होते इला काठियावाड़ी कशीदाकारी में माहिर हो चुकी थी। किस वस्त्र पर किस तरह के नमूने बनाए जाएँ, कौन-से रंगों से नमूना खिल उठेगा और टाँके कौन-से लगें, गें, यह सब वह अच्छी तरह समझ गई थी। और बहुत जल्दी उसके द्वारा काढ़े गए परिधानों की गी। इन परिधानों में काठियावाड के साथ-साथ लखनऊ और बंगाल की भी झलक थी। उसने पत्तियों को चिकनकारी से सजाया था। डंडियों को कांथा से उभारा था। प्रदर्शनी में आए लोगों ने उसकी कला को काफी सराहा। इस प्रकार इला ‘जहाँ चाह वहाँ राह’ जैसी उक्ति को शत-प्रतिशत चरितार्थ करती है। वह सबके लिए प्रेरणा की स्रोत है।

शब्दार्थ : टाँका-हाथ की सिलाई। अनूठी-अभुत। मिसाल-उदाहरण। विष-जहर। घुटने टेकना-झुकना। – कुदरत-प्रकृति। माहिर-अव्वल । परिधानों की-पोशाकों की, वस्त्रों की। इस्तेमाल-प्रयोग। नवीनता-नयापन। अनूठा-बेमिशाल।


कक्षा - 5 हिन्दी पाठ - नन्हा फ़नकार सारांश


 

नन्हा फनकार Summary Class 5 Hindi

नन्हा फनकार पाठ का सारांश

दस साल का नन्हा केशव अपने पिता की तरह पत्थर पर छेनी-हथौड़े से नक्काशी का काम करता था। दरअसल केशव अभी काम सीख रहा था। पिता के एक बार करके दिखा देने पर वह सीधी लकीरों वाले और घुमावदार डिज़ाइन उकेर सकता था। पर उसे घंटियाँ बनाना ज्यादा मुश्किल लगता था। वह होनहार बालक था। उसे पूरी तरह विश्वास था कि एक दिन वह अपने पिता की तरह बारीक जालियाँ, महीन-नफीस बेल बूटे, कमल के फूल, लहराते हुए साँप और इठलाकर चलते हुए घोड़े पत्थर पर उकेर पाने में अवश्य सफल होगा।

केशव के जन्म के पहले ही उसके माता-पिता गुजरात से आगरा में आकर बस गए थे। बादशाह अकबर उस समय आगरे का किला बनवा रहे थे और केशव के पिता को यहीं काम मिल गया था। केशव का जन्म आगरे में ही हुआ था। लेकिन अब वह सीकरी में रहता है।

एक दिन जब वह अपने काम में लगा था एक आदमी, जो वास्तव में बादशाह अकबर थे, उसके पास आकर खड़ा हो गया और उसके द्वारा बनाई हुई घंटियों की बड़ाई करने लगा। वह सफेद अँगरखा और पाजामा पहने हुए था। उसके लंबे बाल गहरे लाल रंग की पगड़ी में अच्छी तरह से ढंके हुए थे। केशव उसे पहचाना नहीं लेकिन इतना वह जरूर समझ गया कि वह कोई बड़ा आदमी है। अभी केशव उस आदमी के व्यक्तित्व का मुआयना कर ही रहा था कि तभी एक पहरेदार ने आकर उसे सावधान किया कि जो आदमी उसके सामने खड़ा है वह बादशाह अकबर हैं और वह उनसे काफी अदब से खड़े होकर बात करे।।

केशव हक्का-बक्का रह गया। बदहवासी में छेनी उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई और वह जल्दी से उठकर खड़ा हो गया। उसने बादशाह को झुककर सलाम किया। उसका दिल धक-धक कर रहा था। लेकिन बादशाह की मुस्कुराहट देखकर वह बहुत जल्दी भयमुक्त हो गया।

अकबर ने केशव के सामने नक्काशी सीखने की इच्छा प्रकट की। केशव तुरंत छेनी-हथौड़ा लाया और बादशाह को उनसे काम करना सिखाने लगा। बादशाह उसके पास जमीन पर बैठ गए। केशव ने कोयले के टुकड़े से पत्थर पर लकीरें खींचकर एक आसान-सा नमूना बनाया और उसे बादशाह को ध्यान से तराशने के लिए कहा। अकबर ने पत्थर पर छेनी रखी और जोर से हथौड़े से वार किया, जिससे कटाव बहुत गहरा हो गया। केशव ने तुरंत गलती पकड़ी और बादशाह को हिदायत दी कि वे हथौड़े को आहिस्ता से मारे। इस समय वह बिल्कुल भूल गया था कि उसकी बगल में बैठा व्यक्ति हिंदुस्तान का बादशाह है। एक अनाड़ी से वयस्क पर अपने काम की धाक जमाने में उसे मजा आ रहा था। लकीरें उकेरते। समय अगर बादशाह से थोड़ी भी गलती हो जाती तो उसे गुस्सा आ जाता।

केशव के काम करने के अंदाज को देखकर अकबर ने धीमे से कहा, “केशव, देखना, एक दिन तुम बड़े फुनकार बनोगे। हो सकता है एक दिन तुम मेरे कारखाने में काम करो।” नन्हा केशव कारखाने वाली बात समझ न सका। फिर अकबर ने उसे बताया कि महल तैयार हो जाने के बाद जब लोग आगरा में आकर रहने लगेंगे, तब वे एक कारखाना बनवाएंगे। इस कारखाने में सल्तनत के सबसे बढ़िया फ़नकार और शिल्पकार काम करेंगे। यह सुनकर लड़के का चेहरा चमक उठा। उसे भरोसा हो गया कि जब कारखाना खुलेगा तब उसे काम अवश्य मिलेगा।

रात हो गई। केशव धीरे-से अपने पिता के बिस्तर में घुस गया और पूछ बैठा, “बादशाह के पास आगरा में एक से बढ़कर एक खूबसूरत महल हैं। फिर वे सीकरी में यह शहर क्यों बनवा रहे हैं?” पिता ने उसे बताया कि जब बादशाह की कोई संतान नहीं थी तब वे सीकरी में ख्वाजा सलीम चिश्ती के पास आए थे। उनके आशीर्वाद से बादशाह को तीन-तीन संतानें हुईं-शाहज़ादा सलीम, मुराद और दनियाल । फिर उन्होंने ख्वाजा सलीम चिश्ती के सम्मान में सीकरी में नगर बसा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने एक बेटे का नाम भी सलीम रख दिया।

शब्दार्थ : फुनकार-कलाकार । बुदबुदाई-धीरे से बोलना। उकेरना-उतारना। संगतराश-साथ में काम करने वाले। पुश्तैनी-खानदानी। आहट-आवाज। तल्खी से-तपाक से। घूरते हुए-देखते हुए। जुर्रत-साहस। बदहवासी-घबराहट। दखलंदाजी-बीच में आ पड़ना या बोल पड़ना। खीझकर-खिन्न होकर। अनमने भाव से-अनिच्छा से । त्यौरियाँ चढ़ जाती-गुस्सा आ जाना। कौतूहल-जिज्ञासा। नेक-अच्छा। लाडला-प्यारा।


कक्षा - 5 हिन्दी पाठ - खिलौनेवाला सारान्श व व्याख्या


 

खिलौनेवाला Summary Class 5 Hindi

खिलौनेवाला  कविता का सारांश

बालक अपनी माँ से कहता है कि आज फिर खिलौनेवाला तरह-तरह के खिलौने लेकर आया है। उसके पास पिंजड़े में हरा-हरा तोता, गेंद, मोटरगाड़ी, गुड़िया आदि खिलौने हैं। रेलगाड़ी चाबी भर देने पर चलने लगती है। खिलौनेवाले के पास छोटे-छोटे धनुष-बाण भी हैं। वह जोर-जोर से आवाज दे रहा है ताकि बच्चे उसके पास आएं और खिलौने खरीदें। मुन्नू ने गुड़िया खरीदी है और मोहन ने मोटरगाडी। मुझे भी माँ से चार पैसे मिले हैं। लेकिन मैं अन्य बच्चों की तरह तोता, बिल्ली, मोटर आदि नहीं खरीदूंगा। मैं तो तलवार या तीर-कमान खरीदूंगा। फिर मैं जंगल में जाकर राम की तरह किसी ताड़का को मार गिराऊँगा। मैं राम बनूंगा और माँ को कौशल्या बनाऊँगा। बालक माँ से कहता है कि उसके आदेश पर वह हँसते-हँसते जंगल को चला जाएगा। लेकिन बालक तुरंत चिंतित हो उठता है। वह कहता है कि हे माँ, मैं तुम्हारे बिना जंगल में कैसे रह पाऊँगा? वहाँ पर किससे रूढ़ेगा और कौन मुझे मनाएगा और गोद में बिठाकर चीजें देगा?

काव्यांशों की व्याख्या

1. वह देखो माँ आज
खिलौनेवाला फिर से आया है।
कई तरह से सुंदर-सुंदर
नए खिलौने लाया है।
हरा-हरा तोता पिंजड़े में
गेंद एक पैसे वाली
छोटी-सी मोटर गाड़ी है।
सर-सरसर चलने वाली।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘रिमझिम भाग-5′ में. संकलित कविता ‘खिलौनेवाला’ से ली गई हैं। इसकी कवयित्री हैं सुभद्रा कुमारी चौहान।
अर्थ-बालक अपनी माँ से कहता है कि आज फिर खिलौनेवाला तरह-तरह के खिलौने लेकर आया है। उसके पास पिंजड़े में बंद हरा-हरा तोता है। उसके पास एक पैसे वाली छोटी-सी मोटर गाड़ी है। यह मोटर गाड़ी सर-सर-सर करके चलती जाती है।

2. सीटी भी है कई तरह की
कई तरह के सुंदर खेल
चाभी भर देने से भक-भक
करती चलने वाली रेल।।
गुड़िया भी है बहुत भली-सी
पहिने कानों में बाली
छोटा-सा ‘टी सेट’ है।
छोटे-छोटे हैं लोटा-थाली।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘रिमझिम भाग-5’ में संकलित कविता ‘खिलौनेवाला’ से ली गई हैं। इसकी रचयिता हैं सुभद्रा कुमारी चौहान।
अर्थ-बालक अपनी माँ से कहता है कि आज फिर खिलौनेवाला सुन्दर-सुन्दर खिलौने लेकर आया है। उसके पास कई तरह की सीटियाँ हैं, चाबी भर देने पर चलने वाली सुन्दर रेल है। जो गुड़िया उसके पास है वह कानों में बाली पहने हुए है। खिलौनेवाला छोटा-सा ‘टी सेट’ और छोटे-छोटे थाली-लोटा भी रखे हुए है।

3. छोटे-छोटे धनुष-बाण हैं।
हैं छोटी-छोटी तलवार
नए खिलौने ले लो भैया
ज़ोर ज़ोर वह रहा पुकार।
मुन्नू ने गुड़िया ले ली है।
मोहन ने मोटर गाड़ी
मचल-मचल सरला कहती है।
माँ से लेने को साड़ी
कभी खिलौनेवाला भी माँ
क्या साड़ी ले आता है।
साड़ी तो वह कपड़े वाला
कभी-कभी दे जाता है।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘रिमझिम भाग-5 में संकलित कविता ‘खिलौनेवाला’ से ली गई हैं। इसकी रचयिता हैं सुभद्रा कुमारी चौहान।।
अर्थ-बालक अपनी माँ से कहता है कि आज फिर खिलौनेवाला तरह-तरह के खिलौने लेकर आया है। खिलौनेवाला ज़ोर-ज़ोर से बोल रहा है कि उसके पास नए-नए खिलौने हैं। वह अन्य खिलौने के साथ-साथ धनुष-बाण और तलवार भी बेच रहा है। मुन्नू ने गुड़िया खरीदी है और मोहन ने मोटरगाड़ी। सरला अपनी माँ से कहती है कि वह खिलौनेवाले से उसके लिए साड़ी खरीद ढूं। इस पर बालक अपनी माँ से कहता है कि क्या कभी खिलौनेवाले साड़ियाँ भी रखते हैं? साड़ियाँ तो कपड़े बेचनेवाले रखते हैं जो कभी-कभी आते हैं।

4. अम्मा तुमने तो लाकर के
मुझे दे दिए पैसे चार
कौन खिलौना लेता हूँ मैं
तुम भी मन में करो विचार।
तुम सोचोगी मैं ले लूंगा।
तोता, बिल्ली, मोटर, रेल
पर माँ, यह मैं कभी न लूंगा
ये तो हैं बच्चों के खेल।
मैं तलवार खरीदूंगा माँ
या मैं नँगा तीर-कमान
जंगल में जा, किसी ताड़का
को मारूंगा राम समान।
प्रसंग-पूर्ववत्।
अर्थ-बालक अपनी माँ से कहता है कि खिलौनेवाले के आने पर तुमने मुझे चार पैसे दे दिए। अब वह विचार कर रहा है कि उसे कौन-सा खिलौना खरीदना चाहिए। वह माँ से कहता है कि वह भी इस बारे में विचार करे। अगर वह सोचती है कि उसका बेटा अन्य बच्चों की तरह तोता, बिल्ली, मोटर या रेलगाड़ी खरीदेगा तो वह गलत सोचती है। उसका बेटा इन खिलौनों को कभी नहीं लेगा। वह कहता है ये खिलौने तो बच्चों के हैं। वह तो तलवार या तीर-कमान खरीदेगा और जंगल में जाकर राम की तरह किसी ताड़का को मार गिराएगा।

5. तपसी यज्ञ करेंगे, असुरों-
को मैं मार भगाऊँगा
यों ही कुछ दिन करते-करते
रामचंद्र बन जाऊँगा।
यहीं रहूँगा कौशल्या मैं
तुमको यहीं बनाऊँगा।
तुम कह दोगी वन जाने को
हँसते-हँसते जाऊँगा।
पर माँ, बिना तुम्हारे वन में
मैं कैसे रह पाऊँगा।
दिन भर घूमूंगा जंगल में
लौट कहाँ पर आऊँगा।
किससे नँगा पैसे, रूढूँगा।
तो कौन मना लेगा
कौन प्यार से बिठा गोद में
मनचाही चीजें देगा।
प्रसंग-पूर्ववत्
अर्थ-बालक अपनी माँ से कहता है कि वह खिलौनेवाले से तलवार या तीर-कमान खरीदेगा और जंगल में जाकर राम की तरह किसी ताड़का को मारेगा। वह सभी असुरों को जंगल से मार भगाएगा ताकि तपस्वीगण शांतिपूर्वक यज्ञ कर सकें। इस प्रकार से वह एक दिन रामचन्द्र बन जाएगा और उसकी माँ कौशल्या । अगर उसकी माँ उसे वन जाने का आदेश देगी तो वह खुशी-खुशी वन भी चला जाएगा। लेकिन बालक शीघ्र ही दुखी हो जाता है। वह माँ से कहता है कि वह जंगल में उसके (माँ के) बिना अकेले कैसे रहेगा। जंगल में वह किससे पैसे माँगेगा? किससे रूठेगा? कौन उसे मनाएगा और गोद में बैठाकर अच्छी-अच्छी चीजें देगा?


कक्षा - 5 हिन्दी सभी पाठों का सारान्श Class 5 Hindi All Chapter's Summary


पाठ 1: राख की रस्सी (लोककथा)

पाठ 2: फसलों के त्योहार (लेख)

पाठ 3: खिलौनेवाला (कविता)

पाठ 4: नन्हा फनकार (कहानी)

पाठ 5: जहाँ चाह वहाँ राह (लेख)

बात का सफ़र

पाठ 6: चिट्ठी का सफ़र (लेख)

पाठ 7: डाकिए की कहानी, कुँवरसिंह की जुबानी (भेंटवार्ता)

पाठ 8: वे दिन भी क्या दिन थे (विज्ञान कथा)

पाठ 9: एक माँ की बेबसी (कविता)

मजाखटोला

पाठ 10: एक दिन की बादशाहत (कहानी)

पाठ 11: चावल की रोटियाँ (नाटक)

पाठ 12: गुरु और चेला (कविता)

पाठ 13: स्वामी की दादी (कहानी)

आस-पास

पाठ 14: बाघ आया उस रात (कविता)

पाठ 15: बिशन की दिलेरी (कहानी)

पाठ 16: पानी रे पानी (लेख)

पाठ 17: छोटी-सी हमारी नदी (कविता)

पाठ 18: चुनौती हिमालय की (यात्रा वर्णन)


कक्षा - 5 हिन्दी - पाठ - 2 - फ़सलों का त्यौंहार - सारांश

फसलें का त्योहार Summary Class 5 Hindi

फसलें का त्योहार पाठ का सारांश

जाड़ा का मौसम है। दस दिनों से सूरज नहीं उगा है। हम लोग सूरज के इंतजार में हैं। रजाई से निकलने की हिम्मत नहीं हो रही। लेकिन खिचड़ी (मकर संक्रांति) का त्योहार आ गया है। अतः जाड़ा के बावजूद हम सभी नहा-धोकर एक कमरे में इकट्ठा हो गए। दादा, चाचा और पापा ने सफेद चकाचक माँड़ लगी धोती और कुर्ता पहना हुआ है। सामने मचिया पर खादी की सफेद साड़ी पहने हुए दादी बैठी थीं। उनके बाल धुलने के बाद सफेद सेमल की रुई जैसे हो गए हैं। उनके सामने केले के कुछ पत्ते कतार में रखे हैं जिसपर तिल, मिट्ठा (गुड़), चावल आदि रखे हुए हैं। दादी ने हम सबसे इन चीजों को बारी-बारी से छूने और प्रणाम करने के लिए कहा। बाद में इन्हें दान दे दिया गया।

खिचड़ी के दिन चूड़ा-दही और खिचड़ी खाने का रिवाज है। किन्तु अप्पी दिदिया को दोनों में से कोई चीज पसंद नहीं है। फिर भी उन्हें दोनों चीजें खानी होंगी क्योंकि आज खिचड़ी का त्योहार है। इस दिन तिल, गुड़ और चीनी के तिलकुट भी खाए जाते हैं जो बड़े स्वादिष्ट लगते हैं।

जनवरी माह के मध्य में भारत के लगभग सभी प्रांतों में फसलों से जुड़ा कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता है। सभी प्रांतों और इलाकों का अपना रंग और अपना ढंग नजर आता है। इस दिन सब लोग अच्छी पैदावार की उम्मीद और फसलों के घर में आने की खुशी का इजहार करते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में मकर संक्रांति या तिल संक्रांति, असम में बीहू, केरल में ओणम, तमिलनाडु में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, झारखंड मे सरहुल, गुजरात में पतंग का पर्व सभी खेती और फसलों से जुड़े त्योहार हैं। इन्हें जनवरी से मध्य अप्रैल तक अलग-अलग समय मनाया जाता है।

झारखंड में सरहुल काफी धूमधाम से मनाया जाता है। अलग-अलग जनजातियाँ इसे अलग-अलग समय में मनाती हैं। इस दिन ‘साल के पेड़ की पूजा की जाती है। इसी समय से मौसम बहुत खुशनुमा हो जाता है। इसीदिन से वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। धान की भी पूजा की जाती है। पूजा किया हुआ आशीर्वादी धान अगली फसल में बोया जाता है।

तमिलनाडु में फसलों से जुड़ा त्योहार ‘पोंगल’ है। इसदिन खरीफ की फसलें चावल, अरहर, मसूर आदि केटकर घरों में पहुँचती हैं और लोग नए धान कूटकर चावल निकालते हैं। हर घर में मिट्टी का नया मटका लाया जाता है। इसमें नए चावल, दूध और गुड़ डालकर उसे पकने के लिए धूप में रख देते हैं। जैसे ही दूध में उफान आता है और दूध-चावल मटके से बाहर गिरने लगता है तो “पोंगला-पोंगल, पोंगला-पोंगल” के स्वर गूंजने लगते हैं।”


कक्षा - 5 हिन्दी पाठ - 1 राख की रस्सी

 


राख की रस्सी Summary Class 5 Hindi

रखा की रस्सी पाठ का सारांश

तिब्बत के बत्तीसवें राजा सौनगवसैन गांपो के मंत्री का नाम लोनपोगार था। लोनपोगार अपनी चालाकी और हाजिरजवाबी के लिए प्रसिद्ध थे। लेकिन उनका बेटा ठीक उनके विपरीत था। वह इतना भोला था कि लोनपोगार काफी चिंतित हो उठे। वे चाहते थे कि उनका बेटा उनकी तरह होशियार हो। एक दिन उन्होंने अपने बेटे को सौ भेड़ें देकर शहर जाने को कहा। साथ में उन्होंने हिदायत दी कि वह इन्हें मारे या बेचे नहीं बल्कि इन्हें सौ जौ के बोरों के साथ वापस लाए।

बेटा शहर पहुँच गया। वह बहुत चिंतित था क्योंकि उसके पास सौ बोरे जौ खरीदने के लिए रुपये नहीं थे। अचानक उसके सामने एक लड़की आकर खड़ी हो गई। जब उसने उसकी चिंता का कारण पूछा तो उसने अपना हाल उससे कह सुनाय या। लडकी झेशियार थी। उसने भेड़ों के बाल उतारकर बाजार में बेच दिए और उससे मिले रुपयों से सौ बोरे जौ खरीद कर उसे वापस घर भेज दिया। बेटे को लगा कि पिताजी बहुत खुश होंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

दूसरे दिन लोनपोगार ने अपने बेटे को फिर शहर भेज दिया उन्हीं भेड़ों के साथ। उन्होंने बेटे से कहा कि भेड़ों के बाल उतारकर बेचना उन्हें पसंद नहीं आया। अतः वह दोबारा ऐसा काम नहीं करेगा। लेकिन भेड़ों के साथ सौ बोरे जौ अवश्य लाएगा। क बार फिर निराश लोनपोगार का बेटा शहर पहुँचा। वह लड़की उसे फिर मिली। उसने फिर अपनी समस्या उसे सुनाई। इस बार लड़की ने भेड़ों के सींग काटकर उन्हें बाजार में बेच दिया और उनसे मिले रुपयों से सौ बोरे जौ खरीद उसे घर वापस भेज दिया।

बेटे ने खुशी में अपने पिता से सारी कहानी कह दिया। सुनकर लोनपोगार बोले, “उस लड़की से कहो कि हमें नौ हाथ लंबी राख की रस्सी बनाकर दे।” उनके बेटे ने लड़की के पास जाकर पिता का संदेश सुनाया। लड़की एक शर्त पर रस्सी बनाने को तैयार थी। शर्त था कि उसके पिता उस रस्सी को गले में पहनें। लोनपोगार ने सोचा ऐसी रस्सी बनाना ही संभव नहीं है। इसलिए लड़की की शर्त स्वीकार कर ली।

अगले दिन लड़की ने नौ हाथ की रस्सी लेकर उसे पत्थर की सिल पर रखकर जला दिया। रस्सी के जलने के बाद उसी के आकार की राख बच गई। लड़की उसे सिल समेत लोनपोगार के पास ले गई और उसे पहनने को कहा। लोनपोगार राख की रस्सी देखकर दंग रह गए। लड़की की समझदारी और सूझबूझ से वे काफी प्रभावित हुए और उससे अपने बेटे की शादी करा दिए।

शब्दार्थः हाजिरजवाबी-तपाक से जवाब देना। मशहूर-प्रसिद्ध। चैन-शांति से। रवाना किया-भेजा। आपबीती-अपने ऊपर घटित। यकीन-विश्वास। मंजूर-स्वीकार । चकित रह गए-हैरान हुए। मुश्किल-कठिन। आँवाए-बिताए, बबदि किए। धूमधाम-खूब अच्छी तरह से।।