नन्हा फनकार Summary Class 5 Hindi
नन्हा फनकार पाठ का सारांश
दस साल का नन्हा केशव अपने पिता की तरह पत्थर पर छेनी-हथौड़े से नक्काशी का काम करता था। दरअसल केशव अभी काम सीख रहा था। पिता के एक बार करके दिखा देने पर वह सीधी लकीरों वाले और घुमावदार डिज़ाइन उकेर सकता था। पर उसे घंटियाँ बनाना ज्यादा मुश्किल लगता था। वह होनहार बालक था। उसे पूरी तरह विश्वास था कि एक दिन वह अपने पिता की तरह बारीक जालियाँ, महीन-नफीस बेल बूटे, कमल के फूल, लहराते हुए साँप और इठलाकर चलते हुए घोड़े पत्थर पर उकेर पाने में अवश्य सफल होगा।
केशव के जन्म के पहले ही उसके माता-पिता गुजरात से आगरा में आकर बस गए थे। बादशाह अकबर उस समय आगरे का किला बनवा रहे थे और केशव के पिता को यहीं काम मिल गया था। केशव का जन्म आगरे में ही हुआ था। लेकिन अब वह सीकरी में रहता है।
एक दिन जब वह अपने काम में लगा था एक आदमी, जो वास्तव में बादशाह अकबर थे, उसके पास आकर खड़ा हो गया और उसके द्वारा बनाई हुई घंटियों की बड़ाई करने लगा। वह सफेद अँगरखा और पाजामा पहने हुए था। उसके लंबे बाल गहरे लाल रंग की पगड़ी में अच्छी तरह से ढंके हुए थे। केशव उसे पहचाना नहीं लेकिन इतना वह जरूर समझ गया कि वह कोई बड़ा आदमी है। अभी केशव उस आदमी के व्यक्तित्व का मुआयना कर ही रहा था कि तभी एक पहरेदार ने आकर उसे सावधान किया कि जो आदमी उसके सामने खड़ा है वह बादशाह अकबर हैं और वह उनसे काफी अदब से खड़े होकर बात करे।।
केशव हक्का-बक्का रह गया। बदहवासी में छेनी उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई और वह जल्दी से उठकर खड़ा हो गया। उसने बादशाह को झुककर सलाम किया। उसका दिल धक-धक कर रहा था। लेकिन बादशाह की मुस्कुराहट देखकर वह बहुत जल्दी भयमुक्त हो गया।
अकबर ने केशव के सामने नक्काशी सीखने की इच्छा प्रकट की। केशव तुरंत छेनी-हथौड़ा लाया और बादशाह को उनसे काम करना सिखाने लगा। बादशाह उसके पास जमीन पर बैठ गए। केशव ने कोयले के टुकड़े से पत्थर पर लकीरें खींचकर एक आसान-सा नमूना बनाया और उसे बादशाह को ध्यान से तराशने के लिए कहा। अकबर ने पत्थर पर छेनी रखी और जोर से हथौड़े से वार किया, जिससे कटाव बहुत गहरा हो गया। केशव ने तुरंत गलती पकड़ी और बादशाह को हिदायत दी कि वे हथौड़े को आहिस्ता से मारे। इस समय वह बिल्कुल भूल गया था कि उसकी बगल में बैठा व्यक्ति हिंदुस्तान का बादशाह है। एक अनाड़ी से वयस्क पर अपने काम की धाक जमाने में उसे मजा आ रहा था। लकीरें उकेरते। समय अगर बादशाह से थोड़ी भी गलती हो जाती तो उसे गुस्सा आ जाता।
केशव के काम करने के अंदाज को देखकर अकबर ने धीमे से कहा, “केशव, देखना, एक दिन तुम बड़े फुनकार बनोगे। हो सकता है एक दिन तुम मेरे कारखाने में काम करो।” नन्हा केशव कारखाने वाली बात समझ न सका। फिर अकबर ने उसे बताया कि महल तैयार हो जाने के बाद जब लोग आगरा में आकर रहने लगेंगे, तब वे एक कारखाना बनवाएंगे। इस कारखाने में सल्तनत के सबसे बढ़िया फ़नकार और शिल्पकार काम करेंगे। यह सुनकर लड़के का चेहरा चमक उठा। उसे भरोसा हो गया कि जब कारखाना खुलेगा तब उसे काम अवश्य मिलेगा।
रात हो गई। केशव धीरे-से अपने पिता के बिस्तर में घुस गया और पूछ बैठा, “बादशाह के पास आगरा में एक से बढ़कर एक खूबसूरत महल हैं। फिर वे सीकरी में यह शहर क्यों बनवा रहे हैं?” पिता ने उसे बताया कि जब बादशाह की कोई संतान नहीं थी तब वे सीकरी में ख्वाजा सलीम चिश्ती के पास आए थे। उनके आशीर्वाद से बादशाह को तीन-तीन संतानें हुईं-शाहज़ादा सलीम, मुराद और दनियाल । फिर उन्होंने ख्वाजा सलीम चिश्ती के सम्मान में सीकरी में नगर बसा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने एक बेटे का नाम भी सलीम रख दिया।
शब्दार्थ : फुनकार-कलाकार । बुदबुदाई-धीरे से बोलना। उकेरना-उतारना। संगतराश-साथ में काम करने वाले। पुश्तैनी-खानदानी। आहट-आवाज। तल्खी से-तपाक से। घूरते हुए-देखते हुए। जुर्रत-साहस। बदहवासी-घबराहट। दखलंदाजी-बीच में आ पड़ना या बोल पड़ना। खीझकर-खिन्न होकर। अनमने भाव से-अनिच्छा से । त्यौरियाँ चढ़ जाती-गुस्सा आ जाना। कौतूहल-जिज्ञासा। नेक-अच्छा। लाडला-प्यारा।
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